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________________ जैन आगम साहित्य और उसमें उत्तराध्ययनसूत्र का, स्थान १.१ जैन धर्म में आगमों का स्थान प्रत्येक धर्म परम्परा के कुछ मौलिक पवित्र ग्रन्थ होते हैं जो उसके मूल सिद्धान्त, जीवन आदर्श तथा आचार सम्बन्धी नियमों के निर्धारक होते हैं। जिस प्रकार वैदिकपरम्परा में 'वेद', बौद्धपरम्परा में 'त्रिपिटक', ईसाईयों में 'बाईबिल', पारसियों में 'अवेस्ता, इस्लाम में 'कुरान' प्रमाणभूत पवित्र धर्मग्रन्थ हैं उसी प्रकार जैन परम्परा में 'आगम' प्रमाणभूत धर्मग्रन्थ हैं। यहां ज्ञातव्य है कि जहां पारसी, ईसाई या इस्लाम धर्मों में एक ग्रन्थ को ही प्रमाणभूत धर्मग्रन्थ माना गया है वहां वैदिक, जैन एवं बौद्ध परम्पराओं में ग्रन्थों के समूह को प्रमाणभूत माना गया है। हिन्दू (वैदिक) परम्परा की 'प्रस्थानत्रयी, बौद्ध परम्परा के 'त्रिपिटक' तथा जैन परम्परा के आगम एक ग्रन्थ न होकर अनेक ग्रन्थों के समूह हैं। यह स्मरण कि 'आगम' शब्द ग्रन्थ-समूह का वाचक है। इसमें अनेक ग्रन्थ समाहित हैं। आगम क्या है ? जैनपरम्परा में तीर्थकर या अर्हत् को अर्थ का उपदेष्टा माना गया है । उनके उपदेशों पर आधारित, गणधर, स्थविर या आचार्य द्वारा रचित ग्रन्थ आगम कहलाते हैं । . आगम शब्द की व्याख्या अनेक रूपों में उपलब्ध होती है। अपने व्युत्पत्तिपरक अर्थ की दृष्टि से आगम शब्द 'आ' उपसर्ग पूर्वक 'गम्' धातु से निष्पन्न हुआ है। यहां 'आ' उपसर्ग पूर्णता का सूचक है तथा 'गम्' धातु ज्ञानार्थक है, इस प्रकार जिससे वस्तुतत्त्व का पूर्ण ज्ञान प्राप्त हो उसे 'आगम' कहा गया है। . १ 'अत्यं भासइ अरहा, सुत्तं गंथति गणहरा निउण। सासनस्स हियट्ठाए, तओ सुत्तं तित्थं पवत्तइ ॥' - आवश्यकनियुक्ति गाथा ६२ (नियुक्ति संग्रह पृष्ठ १०) । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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