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एषणा समिति :
एषणा का सामान्य अर्थ अपेक्षित वस्तु की प्राप्ति का प्रयत्न होता है। मुनि को भी जीवन जीने के लिए कुछ आवश्यकतायें तो बनी रहती है । अतः साधु जीवन की आवश्यकताओं अर्थात् आहार, स्थान आदि की प्राप्ति में विवेक रखना एषणा समिति है। एषणा का एक अर्थ खोज या गवेषणा भी है। इस सन्दर्भ में प्रासुक (शुद्ध) आहार की खोज करना एषणा समिति है।
___ उत्तराध्ययनसूत्र में एषणा के तीन भेद प्रतिपादित किए गये हैं।” (१) गवेषणा - खोज की विधि (२) ग्रहणैषणा - ग्रहण (प्राप्त) करने की विधि और (३) परिभोगैषणा - आहार करने या वस्तु का उपयोग करने की विधि। ये तीनों प्रकार मुनि के आहार, उपधि (वस्त्र-पात्र) और शय्या (स्थान) के सम्बन्ध में बतलाए गये हैं, फिर भी इस समिति के पालन हेतु विशेष सावधानी आहार के सम्बन्ध में रखनी होती है । अतः उत्तराध्ययनसूत्र में आहार विषयक उद्गम, उत्पादन, एषणा (गवेषणा) एवं परिभोग सम्बन्धी दोषों का वर्णन किया गया है।''
मुनि जीवन में आहारशुद्धि के लिए विशेष सतर्कता रखने के मुख्यतः दो कारण हैं। एक तो साधु का जीवन समाज पर भार रूप न बने और दूसरा साधु किसी भी हिंसा का निमित्त या भागीदार न बने। अतः मुनि की भिक्षाविधि को मधुकरी या गौचरी कहा जाता है। जैसे भ्रमर पुष्प को बिना पीड़ा पहुंचाये उसका रस ग्रहण कर लेता है तथा गाय खेत को उजाड़े बिना ऊपर-ऊपर का घास खाकर अपना निर्वाह करते है वैसे ही मुनि भी दाता को किसी प्रकार का कष्ट दिये बिना आहार ग्रहण कर लेते हैं। इस प्रकार एषणा समिति का मुख्य सम्बन्ध मुनि की आहारचर्या से है।
आदाननिक्षेप समिति :
· आदान का अर्थ है किसी वस्तु को उठाना या लेना तथा निक्षेप का अर्थ है किसी वस्तु को रखना। इस प्रकार वस्तु को उठाने एवं रखने में जो विवेक रखा जाता है, उसे आदाननिक्षेप समिति कहा जाता है।
७२ उत्तराध्ययनसूत्र - २४/११ । ७३ उत्तराध्ययनसूत्र - २४/१२ ।
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