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________________ ३६५ ४. आदान निक्षेप समिति – वस्त्र, पात्र आदि उपधि के उठाने एवं रखने में सावधान और ५. उच्चार प्रस्त्रवण समिति - मलमूत्रादि का विसर्जन करने में सावधानी। १. ईर्या समिति - साधु को आवश्यक कार्य हेतु गमनागमन करन पड़ता है, अतः ईर्या समिति में साधु की गमानागमन क्रिया का विधान किया गया है ईर्या का अर्थ है चलना। चलने फिरने में सम्यक् प्रकार से प्रवृत्ति करना ही ईय समिति है। उत्तराध्ययनसूत्र में ईर्या समिति सम्बन्धी अनेक नियम प्रस्तुत किए गए हैं जो निम्न हैं - (१) आलंबन- आलम्बन से तात्पर्य है कि मुनि ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना के लिए ही गमन करे। यहां यह ज्ञातव्य है कि मुनि के द्वारा गोचरी (आहार) हेतु जो गमन किया जाता है वह भी ज्ञान-दर्शन और चारित्र की साधना के लिए ही है। साधना के लिए शरीर की रक्षा करना आवश्यक है । श्रीमद् देवचन्दजी ने ईर्या-समिति की सज्झाय में आवागमन के चार कारण बताये हैं। (क) जिनवन्दन (ख) विहार (ग) आहार और (घ) निहार । (२) काल- ईर्या समिति का काल दिवस अर्थात् सूर्योदय से सूर्यास्त तक है। मुनि को दिन में ही चलना चाहिये, रात्रि में नहीं क्योंकि रात्रि में प्रकाश के अभाव में आवागमन करने पर प्राणीहिंसा की संभावना रहती है। (३) मार्ग- ईर्यासमिति का मार्ग उत्पत्य अर्थात् कुमार्ग का वर्जन करके प्रासुक एवं निर्दोष मार्ग पर ही गमन करना चाहिये। (४) यतना- यतना का अर्थ विवेक या सजगता है। उत्तराध्ययनसूत्र में यतना के चार प्रकार निरूपित किए गये हैं- (१) द्रव्य (२) क्षेत्र (३) काल और (४) भाव। द्रव्य से यतना अर्थात् आंखों से देखकर चलना, क्षेत्र से युगमात्र अर्थात् चार हाथ परिमाण भूमि को देखकर चलना। काल से जब तक सूर्य का प्रकाश रहे तब तक चलना तथा भाव से गमन क्रिया में एकाग्र चित्त होकर चलना अर्थात् चलते समय मन, वचन, काया का पूरा उपयोग चलने की क्रिया में करना ६२ उत्तराध्ययनसूत्र - २४/२। ६३ उत्तराध्ययनसूत्र - २४/४, ५। ६४ जिनवन्दन गामांतरे जी के आहार निहार - श्रीमद् देवचंद्र सज्झायमाला भाग -१, पृष्ठ ७ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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