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________________ ३६४ श्रमण धर्म निवृत्ति प्रधान है, फिर भी जीवनचर्या के सम्यक संचालन हेतु प्रवृत्ति की भी आवश्यकता होती है। अतः किससे निवृत्ति हो एवं किस में प्रवृत्ति हो ? इसे स्पष्ट करते हुए उत्तराध्ययनसूत्र में कहा गया है कि मुनि असंयम से निवृत्त होकर संयम में प्रवृत्ति करे। समितियां श्रमण जीवन के विधेयात्मक पक्ष को प्रस्तुत करती हैं और गुप्तियां उसके निषेधात्मक पक्ष को प्रस्तुत करती है। वस्तुतः प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनों ही परस्पर सापेक्ष हैं। निवृत्ति का अर्थ पूर्ण निषेध नहीं है और प्रवृत्ति का अर्थ पूर्ण विधि नहीं है । यही कारण है कि उत्तराध्ययनसूत्र में इन आठों ही अंगो के लिए 'समिति' शब्द का प्रयोग किया गया है। निवृत्ति में प्रवृत्ति और प्रवृत्ति में निवृत्ति समाहित है । इसे हम एक दृष्टि से ऐसे भी समझ सकते हैं कि समितियों के द्वारा शुभ में प्रवृत्ति होती है तथा गुप्ति के द्वारा अशुभ से निवृत्ति होती है। प्रवृत्ति एवं निवृत्ति दोनों ही साधना के महत्त्वपूर्ण अंग है। मन, वचन और काया के योगों का सम्यक रूप से प्रवर्तन प्रवृत्ति है एवं मन, वचन, काया के योगों का निवर्तन गुप्ति है। अब हम उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार पांच समितियों एवं तीन गुप्तियों का क्रमशः वर्णन प्रस्तुत करेंगे। समिति ... समिति के लिए उत्तराध्ययनसूत्र में 'समिई' शब्द प्रयुक्त हुआ है। समिति' शब्द सम् उपसर्ग पूर्वक इण् (गतौ) धातु से बना है। सम् का अर्थ सम्यक प्रकार से और इण् का अर्थ गति या प्रवृत्ति है। दूसरे शब्दों में विवेक पूर्वक आचरण करना ‘समिति' है। उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार समितियां प्रवृत्ति मूलक है। साधु को प्रतिदिन गमनादि पांच क्रियाओं की आवश्यकता पड़ती है । अतः उत्तराध्ययनसूत्र में समिति के पांच भेद वर्णित है। यथा १. ईर्यासमिति - गमनागमन क्रिया में सावधानी २. भाषा समिति- बोलने में सावधानी ३. 'एषणा समिति-आहार आदि की गवेषणा (अन्वेषण), ग्रहण एवं उपभोग में सावधानी .६० उत्तराध्ययनसूत्र - ३१/२ । ६. 'एयाओ अट्ठसमिईओ, समासेण वियाहिया' - उत्तराध्ययनसूत्र २४/३ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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