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करते हुये 'पुरूषार्थसिद्धयुपाय' में लिखते हैं कि दिन की अपेक्षा रात्रि में भोजन करने से ब्रह्मचर्य महाव्रत का निर्विघ्न पालन संभव नहीं होता। दूसरे, रात्रि में भोजन पकाने के लिए अथवा प्रकाश के लिये जो अग्नि या दीपक प्रज्वलित किया जाता है उसमें भी अनेक जन्तु आकर जल जाते हैं तथा भोजन में भी गिर जाते हैं, अतः रात्रिभोजन हिंसा से रहित नहीं है। 7 जैन परम्परा में तो रात्रिभोजन के निषेध का स्पष्ट विधान है ही पर वैदिक परम्परा में भी रात्रिभोजन को त्याज्य बताया गया है, 58 मार्कण्डेय ऋषि ने कहा है
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इस प्रकार श्रमण के लिये पंचमहाव्रत एवं रात्रिभोजन विरमण व्रत का पालन करना अनिवार्य है।
१०.२
'रात्रौ अन्नं मांसं समं प्रोक्तम् मार्कण्डेण महर्षिणा ।
महाभारत के शांति पर्व में कहा गया है
वर्जनीय महाराजन् निशीथे भोजन क्रिया ।
अष्ट प्रवचन माता : समिति गुप्ति
जैन परम्परा में श्रमण जीवन के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए पांच समितियों एवं तीन गुप्तियों का विधान किया गया हैं। 'उत्तराध्ययनसूत्र' में इन्हें 'अष्ट प्रवचन माता' कहा जाता है। भगवती आराधना के अनुसार समिति और गुप्ति, ज्ञान, दर्शन, चारित्र की वैसी ही रक्षा करती है जैसे माता अपने पुत्र की । अतः समिति, गुप्ति को माता कहा गया है।
प्राकृत के 'पवयणमायाओं शब्द में पवयण अर्थात् प्रवचन का अर्थ है: जिनेश्वर देव प्रणीत सिद्धान्त और 'मायाओ' शब्द के 'माता' और 'मातरः' ये दो संस्कृत रूप बनते हैं। पांच समितियों और तीन गुप्तियों - इन आठों में सम्पूर्ण प्रवचन का समावेश हो जाता है, इसलिए इन्हें 'प्रवचन - माता' कहा जाता है अथवा इन आठों से प्रवचन का प्रसव होता है, इसलिए भी इन्हें 'प्रवचन माता' कहा जाता हैं।
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५७ पुरुषार्थसिद्धयुपाय- १३२ ।
५८ देखिये - जैन आचार सिद्धान्त और स्वरूप पृष्ठ ८७५ ।
५६ भगवती आराधना - १२० उद्धृत उत्तरज्झयणानि, भाग २ पृष्ठ ६१ ।
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