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इस सन्दर्भ में श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परम्परा में किंचित मतभेद है दिगम्बर परम्परा में श्रमण की आवश्यक वस्तुओं को तीन भागों में बांटा गया है। श्रमण की आवश्यक वस्तु को उपधि कहा जाता है १. ज्ञानोपधि-ज्ञान के उपकरण शास्त्र, पुस्तक आदि २. संयमोपधि-मोरपिच्छि और ३. शौचोपधि-शरीर शुद्धि के लिये जल ग्रहण करने का पात्र । दिगम्बर परम्परा में मुनि को वस्त्र . रखने का निषेध है। वस्तुतः जैन श्रमण के लिये उपकरणों की जो संख्या निर्धारित की गई है। उसका उद्देश्य संयम की सुरक्षा एवं अहिंसा महाव्रत का पालन ही है । अतः मुनि वे ही उपकरण अपने पास रख सकते हैं जिससे उनकी संयम-यात्रा का निर्वाह समुचित रूप से हो सके।. परन्तु इस सन्दर्भ में विशेष ज्ञातव्य यह है कि मुनि को संयम के उपकरणों या साधनों पर भी ममत्व नहीं रखना चाहिये। यदि संयम के उपकरणों पर मुनि को आसक्ति हो तो वह परिग्रह के अन्तर्गत आ जाता है। इतना ही नहीं, मुनि को तो शरीर पर भी ममत्व नहीं रखना चाहिये । वस्तुतः शरीर भी एक प्रकार का परिग्रह है।
अपरिग्रह की पांच भावनायें अपरिग्रह व्रत को सुरक्षित रखने के लिए पांच भावनाओं का विधान किया गया है।
१. मुनि को श्रोत्रेन्द्रिय के विषयरूप शब्द के प्रति राग-द्वेष नहीं करना चाहिये।
२. चक्षुरिन्द्रिय के विषयरूप के प्रति राग-द्वेष नहीं करना चाहिये। ३. घाणेन्द्रिय विषयरूप गंध के प्रति अनासक्त रहना चाहिये। ४. रसनेन्द्रिय के विषयरूप स्वाद में लोलुप नहीं रहना चाहिये । ५. स्पर्शेन्द्रिय के विषयरूप. स्पर्श के प्रति राग-द्वेष नहीं रखना चाहिये।
रात्रि भोजन विरमणव्रत श्रमण का छट्ठा व्रत रात्रिभोजन का त्याग है। उत्तराध्ययनसूत्र में श्रमण की आहार चर्या के विषय में विस्तृत वर्णन किया गया है। श्रमण अपनी संयमाराधना के लिए आहार करता है; वह दिन में ही आहार करता है, रात में नहीं। भगवान महावीर ने ब्रह्मचर्य के पालन एवं रात्रिभोजन के त्याग पर विशेष जोर दिया
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