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________________ है। तत्त्वार्थसूत्र में कहा गया है : 'मूर्छा परिग्रहः' अर्थात्, मूर्छा या आसक्ति ही परिग्रह है। प्रशमरतिप्रकरण में भी यही कहा गया है - 'अध्यात्मविदो मूर्छा परिग्रहं वर्णयति' - अध्यात्मवेत्ता निश्चयतः मूर्छा को ही परिग्रह मानते हैं। उत्तराध्ययनसूत्र में परिग्रह की परिभाषा नहीं दी गई है, परन्तु इसमें अपरिग्रह के रूप में जो भी कहा गया है उससे यही प्रतिफलित होता है कि आसक्ति या ममत्व ही परिग्रह है। इसके पच्चीसवें अध्ययन में कहा गया है कि ऐन्द्रिक विषयों की उपस्थिति में भी जल से अलिप्त कमल की तरह उनसे अलिप्त रहना अपरिग्रह महाव्रत है। इस प्रकार परिग्रह का मुख्य तात्पर्य आन्तरिक आसक्ति एवं मूर्छाभाव है। . जैनागमों में परिग्रह के मुख्यतः दो विभाग किये गये हैं - बाह्य परिग्रह और आभ्यन्तर परिग्रह । बाह्य परिग्रह के अन्तर्गत १. क्षेत्र (खुली भूमि) २. वास्तु (भवन) ३. हिरण्य (चांदी) ४. स्वर्ण ५. धन ६. धान्य ७. द्विपद ८. चतुष्पद और ६. कुप्य (घर-गृहस्थी का सामान) आदि का ग्रहण किया जाता है। आंतरिक परिग्रह १४ प्रकार का बताया गया है - १. मिथ्यात्व २. हास्य ३. रति ४. अरति ५. भय ६. शोक ७. जुगुप्सा ८. स्त्रीवेद ६. पुरूषवेद १०. नपुसंकवेद ११. क्रोध १२. मान १३. माया और १४. लोभ। यद्यपि श्रमण के लिये उपर्युक्त समस्त परिग्रह का त्याग अनिवार्य है, तथापि आचारांगसूत्र में साधना में सहायभूत होने से साधु के लिये वस्त्र, पात्र, - कम्बल एवं रजोहरण, इन चार प्रकार के उपकरणों को रखने का विधान है । आगे चलकर इन उपकरणों की संख्या 14 हो गई जो प्रश्नव्याकरणसूत्र के अनुसार निम्न हैं - १. पात्र २. पात्रबन्ध ३. पात्र स्थापना ४. पात्रकेसरिका ५. पटल ६. रजस्त्राण ७. गोच्छक ८ - १०. तीन चंद्दर ११. रजोहरण १२. मुखवस्त्रिका १३. मात्रक और १४. चोलपट्ट। ४७ तत्त्वार्थसूत्र - ७/१२ । ४८ प्रशमरतिप्रकरण - भाग २ परिशिष्ट, पृष्ठ २०७ । ४E उत्तराध्ययनसूत्र - २५/२६ । ५० आचारांग - देखिए प्रथम श्रुतस्कन्ध का नवमा अध्ययन । १५ प्रश्नव्याकरण-१०/५/१० - (अंगसुत्ताणि, लाडनूं, खण्डः ३, पृष्ठ ७०७) । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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