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सेवन से कामवासना उद्दीप्त होकर पीड़ित करती है अतः ब्रह्मचर्य की सुरक्षा के लिये सरस आहार का त्याग आवश्यक है।
१. ब्रह्मचारी साधक को अतिमात्रा में आहार नहीं करना चाहिये। मर्यादा से अधिक आहार करने पर इन्द्रियां अनियन्त्रित हो जाती है ब्रह्मचर्य की सुरक्षा के लिए साधक को आहार का त्याग भी करना पड़े तो करना चाहिये। आहार त्याग के छ: कारणों में एक कारण ब्रह्मचर्य की सुरक्षा भी माना गया है।
६. ब्रह्मचारी साधु को, स्नान आदि. के द्वारा शरीर का श्रृंगार नहीं करना चाहिये।
___१०. साधकं को पांचों इन्द्रियों सम्बन्धी भोगोपभोग का त्याग करना चाहिये। इन्द्रियों के विषयों को कामगुण कहा गया है । सभी प्रकार के काम-गुणों, ऐन्द्रिक विषयों की आसक्ति का ब्रह्मचारी को त्याग करना चाहिये।
इस प्रकार ब्रह्मचर्य की सुरक्षा के लिये उत्तराध्ययनसूत्र में जितने भी ब्रह्मचर्य से विचलित होने की संभावना युक्त स्थान है उनसे दूर रहने की प्रेरणा दी गई है। ये स्थान ब्रह्मचर्य की साधना में तालपुट विष के समान घातक होते हैं।
अपरिग्रह महाव्रत 'अपरिग्रह' श्रमण का पांचवां महाव्रत है। इसको व्याख्यायित करते हुए उत्तराध्ययनसूत्र में कहा गया है- धन, धान्य, दासवर्ग आदि जितने भी निर्जीव एवं सजीव द्रव्य हैं उन सबका कृत-कारित-अनुमोदित तथा मन, वचन और काया से त्याग करना अपरिग्रह महाव्रत है। वस्तुतः अपरिग्रह महाव्रत निर्ममत्व भाव की साधना है। अपरिग्रह को समझने के लिए परिग्रह को समझना अति आवश्यक
४४ उत्तराध्ययनसूत्र - ३२/१० । ४५ उत्तराध्ययनसूत्र - २६/३४ । ४६ उत्तराध्ययनसूत्र - १६/२६ |
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