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________________ 3५२ उत्तराध्ययनसूत्र में कहा गया है कि सत्य महाव्रती को असभ्य वचन नहीं बोलना चाहिये। इसमें साधु को सावध अर्थात् ऐसे शब्द जो हिंसा के अनुमोदक है एवं निश्चयकारी वचन, जिसके अन्यथा होने की संभावना हो, बोलने का भी निषेध किया गया है; जैसे यह अच्छी तरह से काटा गया है; पकाया है; ऐसी सावद्य वाणी साधु को नहीं बोलना चाहिये क्योंकि ये वचन भोजन के प्रति राग भाव को पुष्ट करते हैं अतः इसमें स्वहिंसा है। तथा भोजन पकाने की हिंसाकारक क्रिया का अनुमोदन है अतः इसमें परहिंसा है। इसी प्रकार साधु को 'आज मैं यह कार्य अवश्य कर लूंगा' तथा अवश्य ही ऐसा होगा इस प्रकार की निश्चयात्मक भाषा भी नहीं बोलनी चाहिये। उत्तराध्ययनसूत्र, दशवैकालिकसूत्र आदि में भाषा के चार प्रकार प्रतिपादित किये गये हैं - 1. सत्य भाषा, 2. असत्य भाषा 3. सत्यमृषा भाषा 4. व्यवहार भाषा । इनमें असत्य और सत्यमृषा भाषा का प्रयोग मुनि को नहीं करना चाहिये तथा सत्य भाषा और व्यवहार भाषा का प्रयोग देश-काल एवं परिस्थिति के अनुसार करना चाहिये । यही नहीं, सत्य भी यदि हिंसा का जनक है तो उसे भी नहीं बोलना चाहिये। भाषा के इन चार प्रकारों का विस्तृत विवेचन मनगुप्ति के सन्दर्भ में किया गया है। उत्तराध्ययनसूत्र में सत्य के तीन प्रकारों का वर्णन किया गया है - १. भावसत्य २. करणसत्य और ३. योगसत्य। डॉ. सुदर्शनलाल जैन ने इनका सम्बन्ध उत्तराध्ययनसूत्र सूत्र में उल्लेखित १. सरंभ - (मन में बोलने का संकल्प) २. समारंभ - (बोलने का प्रयत्न) और ३. आरंभ-(बोलने की क्रिया) के साथ जोड़ते हुए लिखा हैं कि मन में सत्य बोलने का संकल्प करना भावसत्य, सत्य बोलने का प्रयत्न करना करण सत्य और सत्य बोलना योगसत्य है। उत्तराध्ययनसूत्र के उनतीसवें अध्ययन में भावसत्य आदि का फल निम्न रूप से प्रतिपादित किया गया है" - . २३ उत्तराध्ययनसूत्र - १/३६ ।। ३४ उत्तराध्ययनसूत्र - १/३६, २४, २४/२० । ३५ (क) उत्तराध्ययनसूत्र - २४/२२; (ख) दशवकालिक - ७/२, ३॥ २६ उत्तराध्ययनसूत्र एक परिशीलन - पृष्ठ २६५ । २७.उत्तराध्ययनसूत्र - २६/५०, ५१, ५२ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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