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________________ ३५१ सुशोभित हुई अहिंसा त्रस और स्थावर सकल जीवों के लिए क्षेम और कल्याण करने वाली है। अहिंसा महाव्रत की भावनायें आचारांग, समवायांग एवं प्रश्नव्याकरणसूत्र में अहिंसाव्रत की पांच भावनाओं का उल्लेख मिलता है। आचारांग, समवायांग के अनुसार इनके नाम निम्न है : १. ईर्यासमिति २. मनोगुप्ति ३. वचनगुप्ति ४. आलोकित पान भोजन और ५. आदान भाण्ड मात्र निक्षेपण समिति तथा प्रश्नव्याकरण सूत्र के अनुसार इनके नाम निम्न है - १. ईर्यासमिति २. मनः समिति ३. भाषा समिति ४. एषणा समिति और ५. आदान निक्षेपण समिति। सत्य महाव्रत उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार क्रोध, हास्य, लोभ अथवा भय के कारणों के उपस्थित होने पर भी असत्य वचन नहीं बोलना सत्य महाव्रत है, साथ ही इसमें सत्य का निवृत्ति-प्रवृत्तिमूलक स्वरूप प्रतिपादन करते हुए कहा गया है : 'सदा अप्रमत्त भाव से मृषावाद का त्याग करना चाहिये तथा हर क्षण सावधान रहते हुए हितकारी एवं सत्य वचन बोलना चाहिये।2 सामान्यतः सत्य कथन का अभिप्राय बात का ज्यों का त्यों कहना है किन्तु जैन दर्शन में सत्य का स्वरूप अहिंसा पर आधारित है । दूसरी ओर सत्यानुभूति के अनुरूप आचरण ही अहिंसा है। वस्तुतः अहिंसा एवं सत्य परस्पर सापेक्ष या पूरक है। दूसरे शब्दों में सत्य का आधार अहिंसा है तथा अहिंसा को वाचिक स्तर पर पूर्णता प्रदान करने वाला तत्त्व सत्य है। अहिंसा की रक्षा के लिए यह आवश्यक है कि हम किसी के प्रति अप्रिय वचन न बोले क्योंकि कठोर एवं अप्रिय वाणी हृदय में व्यथा उत्पन्न करती है; अतः हिंसाकारक है। १६ प्रश्नव्याकरण - ६/१/३ २० (क) आचारांग - २/१५/४४ से ४६ (ख) समवायांग - २५/१ (ग) प्रश्नव्याकरण - ६/१/१६ २१ उत्तराध्ययनसूत्र - २५/२४ । २२ उत्तराध्ययनसूत्र - १/२४, २५ । - (अंगसत्ताणि, लाडनं, खण्ड ३, पृष्ठ ६५३) । - (अंगसुत्ताणि, लाडनूं, खण्ड १, पृष्ठ २४२ से ४३) । - (अंगसुत्ताणि, लाडनूं, खण्ड ३, पृष्ठ ८६२ ) । - (अंगसुत्ताणि, लाडनूं, खण्ड ३, पृष्ठ ६८६) । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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