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३. शमन : शम् का अर्थ है शांत करना । अतः जो अपने आवेशों एवं आवेगों को शांत या नियन्त्रित करता है, वह शमन है।
इस प्रकार श्रमण संघ एक पवित्र संस्था है। इसमें प्रविष्ट होने वाले साधक को अनेक नियमों एवं मर्यादाओं का पालन करना होता है। जहां तक संयमी जीवन में प्रवेश करने की पात्रता का प्रश्न है इस सन्दर्भ में उत्तराध्ययनसूत्र का दृष्टिकोण उदार है । इसके अनुसार श्रमण जीवन का प्रवेश द्वार प्रत्येक जाति एवं वर्ण के व्यक्ति के लिए खुला है। इसकी पुष्टि उत्तराध्ययनसूत्र के हरिकेशीय नामक अध्ययन से होती है जहां एक चांडाल कुल में उत्पन्न व्यक्ति भी श्रमण जीवन को स्वीकार करता है। कालान्तर में श्रमण जीवन को स्वीकार करने वाले व्यक्ति की कुछ योग्यतायें निर्धारित की गई। धर्मसंग्रह में उन योग्यताओं का उल्लेख निम्न रूप में प्राप्त होता है -
१. आर्यदेश समुत्पन्न २. शुद्धजाति कुलान्वित ३. क्षीणप्रायःशुभकर्मा ४. निर्मल बुद्धिसम्पन्न ५. विज्ञान संसार नैर्गुण्य ६. विरक्त ७. मंदकषायी ८. अल्पहास्यादि वाला ६. कृतज्ञ १०. विनीत ११. राजसम्मत १२. अद्रोही १३. सुंदर, सुगठित एवं पूर्ण शरीर वाला १४. श्रद्धावान १५. स्थिर विचार वाला १६. समर्पण पूर्वक स्वेच्छा से संयम ग्रहण करने के लिए तत्पर ।
उत्तराध्ययनसूत्र में संयमी जीवन के अधिकारी का वर्णन पूर्वोक्त रूप से नहीं मिलता है फिर भी इसके "सभिक्षुक' एवं 'पापश्रमणीय' अध्ययन में श्रमण जीवन के योग्य पात्र का सुव्यवस्थित स्वरूप स्पष्ट हो जाता है। यहां विशेष रूप से ज्ञातव्य यह है कि इसमें निर्धारित श्रमण जीवन की योग्यता जाति पर आधारित न होकर गुणों पर आधारित है।
१०.१ चातुर्याम और पंचमहाव्रत
उत्तराध्ययनसूत्र के तेईसवें अध्ययन में यह उल्लेख आता है कि भगवान पार्श्वनाथ ने चातुर्याम धर्म का तथा भगवान महावीर ने पंचमहाव्रतात्मक धर्म का प्रतिपादन किया था। इसमें चातुर्यामों का नाम एवं विस्तृत उल्लेख पृथक रूप
४ धर्मसंग्रह - तृतीय भाग, ३/७२ से ७७ । ५ उत्तराध्ययनसूत्र - अध्ययन १५, १७। ६ उत्तराध्ययनसूत्र - २३/२३ ।
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