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________________ ३३१ अनशन तप का फल बताते हुए उत्तराध्ययनसूत्र के उनतीसवें अध्ययन में कहा गया है- 'आहार का त्याग करने से जीवन की आशंसा अर्थात् शरीर तथा प्राणों का मोह छूट जाता है एवं तपस्वी संक्लेश से मुक्त हो जाता है' 102 इससे स्पष्ट होता है कि अनशन मात्र देह-दण्डन नहीं हैं, वरन् आध्यात्मिक उपलब्धि का साधन है। आयुर्वेदशास्त्र में कहा गया है 'लंघनं परमौषधम्'-लंघन / उपवास श्रेष्ठ औषधि है । इस प्रकार अनशन तप की विशेषता के सम्बन्ध में औपनिषदिक ऋषियों का तो यहां तक कहना है कि अनशन से बढ़कर और कोई तप नहीं है।104 उपवास से तन की ही नहीं मन की भी शुद्धि होती है। इस सन्दर्भ में गीता में कहा गया है 'आहार का त्याग करने से इन्द्रियों के विषयविकार दूर हो जाते हैं और मन पवित्र हो जाता है।105 २. ऊणोदरी (अवमौदर्य) : उत्तराध्ययनसूत्र एवं भाव की अपेक्षा से आहार की मात्रा में कमी करना ऊणोदरी तप है। द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और पर्यायों की अपेक्षा से ऊणोदरीतप अनेक प्रकार का होता है।106 (१) द्रव्यऊणोदरी : आहार की मात्रा से कम खाना द्रव्य ऊणोदरी है। उत्तराध्ययनसूत्र की बृहद्वृत्ति में आहार का परिमाण पुरूष के लिए ३२ कवल एवं स्त्री के लिए २८ कवल बताया गया है। इससे कुछ कम खाना द्रव्यऊणोदरी (२) क्षेत्रऊणोदरी : किसी निश्चित स्थान से ही भिक्षा लेना एवं अन्य क्षेत्रों से भिक्षा लेने का त्याग करना क्षेत्रऊणोदरी है। उत्तराध्ययनसूत्र में क्षेत्रऊणोदरी के छ: प्रकार बताये हैं108 - .. १. पेटा : पेटिका के आकार में घरों की कल्पना करके उन्हीं घरों में ही आहार लेने के लिए जाना, शेष घरों का त्याग करना पेटा क्षेत्र ऊणोदरी तप है। १०२ उत्तराध्ययनसूत्र - २६/३७ । १०३ देखिये - जैन दर्शन स्वरूप और विश्लेषण पृष्ठ - २११ । -१०४ मैत्रायणी आरण्यक - १०/७२ । 1०५ गीता - २/५६ । १०६ उत्तराध्ययनसूत्र ३०/१४ । 900 उत्तराध्ययनसूत्र टीका पत्र.-६०४ 900 उत्तराध्ययनसूत्र ३०/१६ । - (शान्त्याचार्य)। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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