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से आत्मा विशुद्ध होती है। ऋषि-महर्षियों ने इसी स्नान की प्रशंसा की है । यही .. कर्म मल को दूर करने वाला सच्चा स्नान है।" ग. समयमूढ़ता :
समय का एक अर्थ सिद्धान्त या शास्त्र भी होता है। इस अर्थ में सैद्धान्तिक ज्ञान या शास्त्रीय ज्ञान का अभाव समयमूढ़ता है।''
इस प्रकार देवमूढ़ता, लोकमूढ़ता एवं समयमूढ़ता से रहित व्यक्ति अमूढ़. दृष्टि होता है। ५. उपबृंहण :
____ उपबृंहण की व्याख्या करते हुए उत्तराध्ययनसूत्र की टीकाओं में कहा गया है – सम्यग् आचरण करने वाले गुणीजनों की प्रशंसा करना तथा उनके शुद्ध आचरण में सहायक बनना उपबृंहण है।' उपबृंहण का व्युत्पत्तिपरक अर्थ करते हुए : अमृतचन्द्राचार्य लिखते हैं कि अपने आध्यात्मिक गुणों का विकास करना ही उपबृंहण है।" उपबृंहण को उपगूहन भी कहा जाता है। उसका अर्थ है अपने गुणों और दूसरों के दुर्गुणों/दोषों को अभिव्यक्त न करना। ६. स्थिरीकरण :
धर्ममार्ग से च्युत होने वाले व्यक्तियों को पुनः धर्म में स्थिर करना स्थिरीकरण है। यह सम्यकदृष्टि सम्पन्न व्यक्ति का महत्त्वपूर्ण गुण है। किसी को धर्ममार्ग में संलग्न करने का कितना महत्त्व है इसका प्रतिपादन करते हुए जैनाचार्यों का यहां तक कहना है कि व्यक्ति अपने शरीर की चमड़ी के जूते बनाकर अपने माता-पिता को पहना दे तो भी वह उनके उपकारों का मूल्य नहीं चुका सकता; किन्तु यदि वह उन्हें धर्ममार्ग में स्थिर करे या उनकी धर्म साधना में सहायक बने तो वह माता-पिता के ऋण से उऋण हो सकता है।
धर्ममार्ग से पतित होने के दो कारण हैं - १. दर्शनविकृति – दूषित दृष्टिकोण २. चारित्रविकृति – दूषित आचरण । दोनों ही स्थितियों में बोध देकर
७४ उत्तराध्ययनसूत्र - १२/४६, ४७ । ७५ जैन, बौद्ध एवं गता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन - भाग २, पृष्ठ ६२ । ७६ उत्तराध्ययनसूत्र टीका-पत्र - २७६५ - (नेमिचन्द्राचार्य)। ७७ पुरुषार्थसिद्धयुपाय - २७ ।
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