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६. अभिगमरूचि :
अंग साहित्य आदि ग्रन्थों के अर्थ एवं व्याख्या द्वारा उपलब्ध तत्त्वबोध या तत्त्व श्रद्धा को अभिगम रूचि सम्यक्त्व कहा गया है। 53
७. विस्ताररूचि :
वस्तु तत्त्व के अनेक पक्षों का विभिन्न प्रमाणों तथा नयों द्वारा बोध प्राप्त कर उनकी यथार्थता पर श्रद्धा रखना विस्ताररूचि सम्यक्त्व है। 54 संक्षेप, में सत्य के सभी पहलुओं को पकड़ने वाली सर्वांगीण दृष्टि विस्ताररूचि है।
क्रियारूचि :
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धार्मिक विधि-विधानों या अनुष्ठानों के प्रति आस्था का होना क्रियारूचि सम्यक्त्व है।
६. संक्षेपरूचि :
जो निर्ग्रन्थ प्रवचन में पारंगत नहीं है, किन्तु कुमार्ग या कुदृष्टि में प्रवृत्त भी नहीं है ऐसे व्यक्ति की अल्पतम सत्यानुभूति संक्षेपरूचि सम्यक्त्व है। जो व्यक्ति असत् मतवाद से मुक्त है तथा सत्यवाद में विशारद नहीं है उसकी सम्यग्दृष्टि को संक्षेप रूचि कहा जाता है। 56
१०. धर्मरूचि :
सम्यक्त्व है। 57
जिन प्रणीत श्रुतधर्म एवं चारित्रधर्म में श्रद्धा रखना धर्मरूचि
उत्तराध्ययनसूत्र का रूचि के सन्दर्भ में किया गया यह विश्लेषण मनोवैज्ञानिक है क्योंकि प्राणीमात्र में मिलने वाली योग्यता के तरतमभाव एवं उनके कारण होने वाली रूचि विचित्रता के आधार पर यह वर्गीकरण हुआ है। स्थानांग एवं
५३ उत्तराध्ययनसूत्र - २८/२३ । ५४ उत्तराध्ययनसूत्र - २८ / २४ ।
५५ उत्तराध्ययनसूत्र - २८ / २५ । ५६ उत्तराध्ययनसूत्र - २८ / २६ । ५७ उत्तराध्ययनसूत्र - २८ / २७
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