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डॉ. धर्मचन्द जैन के अनुसार आत्महत्या आवेशपूर्वक की जाती है। 'इसमें राग-द्वेष का भाव मौजूद रहता है जबकि समाधिमरण में राग-द्वेष को समभाव पूर्वक जीता जाता है।
डॉ. अरूण प्रताप सिंह के अनुसार आत्महत्या सद्यःजात उद्वेग का परिणाम है; जबकि समाधिमरण सुविचारित अध्यवसाय का।
डॉ. रज्जन कुमार के अनुसार जहां व्यक्ति मुख्य रूप से अपनी समस्याओं से ऊबकर मन की सांवेगिक अवस्था से ग्रसित होकर आत्महत्या करता है वहां समाधिमरण में व्यक्ति मन की सांवेगिक अवस्थाओं से पूरी तरह मुक्त होकर समभावपूर्वक मृत्यु का वरण करता है।
पूर्वोक्त विवेचन से सिद्ध होता है कि समाधिमरण और आत्महत्या के कारण, उद्देश्य, परिस्थिति आदि में पूर्णतः भिन्नता है। जहां आत्महत्या के कारण चिन्ता, विक्षोभ, भय, परेशानी, मानभंग, इष्टवियोग, अनिष्टसंयोग, भावावेश है, वहीं समाधिमरण का मुख्य कारण उपस्थित मृत्यु का समभाव पूर्वक स्वागत है।
आत्महत्या जीवन से भागने की तैयारी है; जबकि समाधिमरण मृत्यु को मित्र बनाने की कला है। आत्महत्या विवशतापूर्वक देह त्याग है; जबकि समाधिमरण स्वेच्छापूर्वक । आत्महत्या के समय व्यक्ति खिन्नता, उद्विग्नता तथा पराजयता के भावों का शिकार होता है, जबकि समाधिमरण का साधक प्रसन्नता, क्षमता, निर्भयता तथा वासनाओं पर आत्मा की विजय के भावों से सराबोर होता है।
___ उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार समाधिमरण के समय चित्त अतिप्रसन्न तथा आघात रहित होता है। जबकि आत्महत्या वाला व्यक्ति मरण के समय सन्त्रस्त (उद्विग्न) होता हैं। आत्महत्या में व्यक्ति की मानसिकता बेहोशी अर्थात् अविवेक की होती है, जबकि समाधिमरण चित्त की एक सजग दशा है। इसमें व्यक्ति अपनी मौत का साक्षी होता है। उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार आत्महत्या दुर्गति का कारण है जबकि समाधिमरण सद्गति का । इसमें आत्महत्या को बालमरण के अन्तर्गत अनन्त भवभ्रमण.का कारण माना गया है।
२ 'प्रकीर्णक साहित्य : मनन और मीमांसा', पृष्ठ - १०४ ।
श्रमण पत्रिका' - ई.स.१८६३, अंक - १०-१२, पृष्ठ १४-१५ । ६५ 'जैन धर्म में समाधिमरल की अवधारणा', पृष्ठ १४५ ।
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