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आत्महत्या मृत्यु का आकस्मिक वरण है जबकि समाधिमरण आगत मृत्यु का सहर्ष वरण है। कई विचारक समाधिमरण में अनशन अर्थात् आहार त्याग का जो विधान है, उसको आधार बनाकर इसे आत्महत्या का प्रकार मानते हैं । किन्तु ज्ञातव्य है कि इस अनशन का उद्देश्य देह के प्रति निर्ममत्व भाव की साधना है न कि देहदण्डन या मृत्यु की आकांक्षा । इसमें यदि भय या दुःख से प्रेरित होकर आहार का त्याग किया जाता तो यह अवश्य आत्महनन की श्रेणी में आ जाता। संक्षेप में, जैनदर्शन में समाधिमरण की प्रक्रिया का विस्तृत विवेचन किया गया है कि किन परिस्थितियों में तथा किन भावों में उसे स्वीकार करना चाहिए। इसे जानने वाले विचारक समाधिमरण को आत्महत्या किसी रूप में भी नहीं मान सकते हैं।
उत्तराध्ययन सूत्र में विवेचित अकाममरण तथा सकाममरण की प्रक्रिया भी समाधिमरण एवं आत्महत्या के अन्तर को स्पष्ट करती है। आत्महत्या बालमरण के अन्तर्गत आती है। वह बालमरण का एक रूप है। बालमरण अज्ञानी व्यक्तियों का होता है। बालमरण आत्महत्या है क्योंकि इसमें शीघ्र ही मृत्यु प्राप्त करने के लिए प्रयास किया जाता है। बालमरण आई हुई मृत्यु का भय पूर्वकं वरण है; जबकि समाधिमरण में न तो मृत्यु को निमन्त्रण दिया जाता है न भयपूर्वक उसे स्वीकार किया जाता है। वरन् सुनियोजित रूप से सजगता पूर्वक समुपस्थित मृत्यु का स्वागत किया जाता है।
समाधिमरण के साधक को जीवन एवं मृत्यु की यथार्थता का ध होता है अर्थात् वह सम्यग्ज्ञान से युक्त होता है। आत्महत्या करने वाला व्यक्ति अज्ञानी होता है 1
आत्महत्या के लिए जो विधि अपनायी जाती है, वह पूर्णत: हिंसक होती है जैसे - विषमरण, अग्निदाह, जलप्रवेश आदि । समाधिमरण में अहिंसक भावनावश शनैः-शनैः आहार का अल्पीकरण करते हुए उसका त्याग किया जाता है। आत्महत्या में मृत्यु की शीघ्रता से प्रतीक्षा की जाती है, जबकि समाधिमरण में मृत्यु के प्रति जरा भी शीघ्रता की कामना नहीं होतीं है वरन् शान्त भाव होता है। समाधिमरण में जीवन और मृत्यु दोनों की आकांक्षा अनुचित मानी गई है। समाधिमरण चित्त का जीवन और मृत्यु दोनों से अतिक्रमण कर जाना है।
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