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________________ २६७ अपनी आत्मसाधना और संघीयजीवन की साधना में भारस्वरूप बन जाये; तब उसके पोषण के प्रयत्नों का त्याग करके सहज रूप से मृत्यु के आगमन को स्वीकार कर लेना चाहिये । समाधिमरण के सम्भावित दोष . उपासकदशांगसूत्र में समाधिमरण के लिए निम्न पांच दोषों से बचने का निर्देश किया गया है। (१) इहलोकाशंसा प्रयोग - इह लोक सम्बन्धी उत्तम ऐश्वर्य और कामभोग की कामना करना। संक्षेप में ऐहिक सुखों की कामना इहलोकाशंसा प्रयोग है। (२) परलोकाशंसा प्रयोग - स्वर्ग के महर्द्धिक देव तथा इन्द्र आदि बनने की अभिलाषा करना अर्थात् पारलौकिक सुखों की कामना परलोकाशंसा प्रयोग है। (३) जीविताशंसा प्रयोग - लम्बे समय तक जीवित रहने की इच्छा करना जीविताशंसा प्रयोग है। (४) मरणाशंसा प्रयोग - जीवन की परेशानियों से घबराकर शीघ्र मरने की कामना मरणाशंसा प्रयोग है। (५) कामभोगाशंसा प्रयोग - ऐन्द्रिक विषयों के भोग की आकांक्षा कामभोगाशंसा प्रयोग हैं। बौद्धपरम्परा में भी जीवन की कामना एवं मृत्यु की कामना दोनों को अनुचित माना गया है। ये भवतृष्णा तथा विभवतृष्णा क्रमशः जीविताशा तथा मरणाशा की ही प्रतीक हैं। ५४ उपासकदशांग - १/४४ - (अंगसुत्ताणि, लाडनू, खंड ३, पृष्ठ ४०६) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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