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राग, द्वेष, मोह आदि के अशुभ विकल्प रूप भावना अशुभभावना कहीं जाती है। अशुभभावना जीव की दुर्गति का कारण बनती है। अतः सूत्रकार अशुभभावनाओं का स्वरूप बताकर उनका त्याग करने की प्रेरणा देते हैं। वे अशुभ भावनायें निम्न हैं - (१) कन्दर्पभावना
कन्दर्प का अर्थ काम होता है (कन्दर्पःकाम)। उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार काम वासना को उत्तेजितकरने वाले हास्य, कौत्कुच्य अर्थात् कौतूहल, कामचेष्टा आदि कान्दीभावना के अन्तर्गत आते हैं।"
उत्तराध्ययनसूत्र के टीकाकार शान्त्याचार्य ने कन्दर्प के पांच अर्थ किये हैं2 -
(१) ठहाका मारकर हंसना, (२) गुरू आदि के साथ व्यंग्य में बोलना, (३) काम कथा करना, (४) काम वासना का उपदेश देना,
(५) काम वासना की प्रशंसा करना। पुनश्च टीकाकार ने कौत्कुच्य के दो प्रकार भी बतलाये हैं - .
(१) कायकौत्कुच्य – भौंह, आंख, मुंह आदि अवयवों को इस प्रकार बनाना जिससे उन्हें देखने वाले हंसने लगे। .
(२) वाक्कौत्कुच्य - विविध जीव जन्तुओं की बोली बोलना तथा सीटी आदि बजाना।
इस विश्लेषण से प्रतीत होता है कि इसमें व्यर्थ का कौतुहल उत्पन्न करने की भावना प्रमुख रहती है। (२) आभियोगीभावना
सुख-समृद्धि या भौतिक उपलब्धियों के लिए मंत्र-योग और भूतिकर्म का प्रयोग करना आभियोगी भावना है।
४१ उत्तराध्ययनसूत्र ३६/२६४ । ४२ उत्तराध्ययनसूत्र टीका पत्र ७०६ ४३ उत्तराध्ययनसूत्र टीका पत्र - ७०६
- (शान्त्याचाय)।
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