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________________ २६४ (३) किल्विषीभावना किल्विष का अर्थ है नीच या निन्दित (घृणित)। अतः किल्विषिकभावना का सम्बन्ध निन्दा, छल-छद्म आदि निम्न स्तरीय व्यवहार से है। ज्ञान, ज्ञानी, धर्माचार्य, संघ और साधुओं की निन्दा या अवर्णवाद करना किल्विषीभावना है। प्रवचनसारोद्धार तथा मूलाराधना में भी किल्विषी भावना के ये ही प्रकार बतलाये गये हैं। (४) आसुरीभावना निरन्तर क्रोध करना तथा दूसरों के अहित हेतु निमित्तविद्या आदि का प्रयोग करना आसुरीभावना के लक्षण हैं। असुर का अर्थ सामान्यतः राक्षस या दैत्य किया जाता है। दशवैकालिकसूत्र में क्रोध को असुर कहा गया है। वस्तुतः जिस प्राणी में दूसरों के अहित में सुख मानने की वृत्ति होती है जो परपीड़न में आनन्द मानता है, वह असुर है और परपीड़न में आनन्द मानने की वृत्ति आसुरी भावना है। ___ उत्तराध्ययनसूत्र की टीका में अनुबद्धरोषप्रसर का अर्थ करते हुए लिखा है- सदा विग्रह करते रहना, प्रमाद हो जाने पर भी अनुताप न करना, दूसरों के द्वारा क्षमायाचना कर लेने पर भी प्रसन्न न होना आसुरी भावना है ।" (६) मोहीभावना ... मोहीभावना का अर्थ अविवेकपूर्वक कषायों के वशीभूत होकर देहत्याग का संकल्प करना है। व्यक्ति जब देहत्याग करता है तो संक्लेश आदि आवेगों के वशीभूत होकर शस्त्र आदि के द्वारा उन्मार्ग की प्राप्ति और सन्मार्ग की हानि होती है, यह मोहीभावना है। उत्तराध्ययनसूत्र में मोहीभावना के निम्न साधन बतलाए है।49 (१) शस्त्रग्रहण; (२) विषभक्षण; ४ (क) प्रवचनसराचार गाथा ६४३; (ब) मूलाराधाना - ३/1510 ४५ उत्तराध्ययनसूत्र - ३६/२६६ । ४६ 'आसुरत्तं न गच्छेज्जा' - दशवकालिक - ८/२५ । ४७ उत्तराध्ययनसूत्र टीका-पत्र -७०६ ४. उत्तराध्ययनसूत्र टीका-पत्र - ७११ VE उत्तराध्ययनसूत्र - ३६/२६७ । - (शान्त्याचाय)। - (शान्त्याचाय)। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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