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अज्ञान एवं प्रमादवश इस शोध प्रबंध में यदि कुछ कमियां रह गई हों तो प्रबुद्ध पाठक अपने सुझाव एवं मंतव्य प्रस्तुत करने हेतु सादर आमंत्रित है । आशा है वे कमियों के प्रति अंगुलि निर्देशकर श्रुतसाधना की गरिमा को सुरक्षित रखने में अवश्य सहयोगी बनेंगे ।
___ चरम तीर्थंकर प्रभु महावीर के 2600 वें जन्मकल्याणक वर्ष में प्रभु की अंतिम देशना से सम्बन्धित यह शोधबंध लोकार्पण होने जा रहा है । भगवान के उपदेश एवं संदेश उनकी उपस्थिति में तो लाभप्रद थे ही किन्तु आज के सन्दर्भ में उन संदेशों की उपयोगिता और अधिक है । यह प्रभु की वाणी जन जन के आत्मउत्कर्ष में उपकारी बने यही शुभाशंसा...
जिनाज्ञा के विपरीत कुछ लिखा गया हो तो मिच्छामि दुक्कडम् ।
अनुभव-हेम-गुरूचरणरज साध्वी विनीतप्रज्ञा
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