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परिपूर्ण बन सका है। एतदर्थ में उनके प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करती हूं।
इस कृति के संशोधन में मूर्धन्य मनीषी डॉ. रवीन्द्र कुमार जी जैन एम.ए., डी.लिट्., का प्रखर पांडित्य तथा तलस्पर्शी चिन्तन अतीव उपयोगी बना है । एतदर्थ मैं उनकी चिर ऋणी हूं।
इस शोधप्रबंध हेतु विश्वविद्यालय संबंधी छोटी बड़ी सभी औपचारिकताओं को पूरी करने में श्री नारायणचन्द जी मेहता (अहमदाबाद) ने जो महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता । उनका स्नेह, सद्भावभरा सहयोग, इस कृति के अस्तित्व के साथ सदा सुरक्षित रहेगा।
_ 'शाजापुर श्रीसंघ के सदस्यों की आत्मीय स्मृतियां इस शोध कार्य का अविभाज्य अंग है। जहां मुझे अध्ययन के अनुकूल शान्त एवं स्वस्थ वातावरण मिला, समुचित व्यवस्था मिली और मिला सभी के अन्तर्हृदय का असीम अनुराग, जिसके सहारे पू. गुरूवर्याश्री से दूर रह कर भी इस कार्य को सुचारू रूप से सम्पन्न कर सकी।
स्वाध्याय समर्पित श्री ज्ञान जैन के श्रुतानुराग एवं अथक श्रम का सुपरिणाम है कि इस शोधप्रबंध का प्रकाशन इतनी अल्प अवधि में हो सका । कम्प्यूटर कॉपी से लेकर साजसज्जा तक के सभी प्रेस सबंधी कार्य उन्होंने जिस लगन के साथ पूर्ण किये वे वास्तव में अनुमोदनीय हैं । उनके सहयोग के बिना इतना परिष्कृत एवं आकर्षक प्रकाशन होना अशक्य था । उनकी श्रुत साधना मंजिल प्राप्ति तक सतत गतिमान रहे, यही परमात्मा से मंगलकामना है और उनके सार्थक श्रम के प्रति यही सच्ची कृतज्ञता है ।
इस शोध सामग्री को कम्प्यूटराइज्ड करने में मेरी सहपथगामिनी मुमुक्षु सुश्री अनीता बी. शंकलेचा (बी.ए.), श्री विनयजी, श्री मयंकजी का तथा मुद्रण व्यवस्था में धर्म स्नेही बंधु श्री मानोज जी नारेलिया का जो श्रमपूर्ण सहयोग रहा वह मानस पटल पर सदैव जीवंत रहेगा । इस कृति के शुद्ध स्वच्छ व शीघ्र मुद्रण हेतु जैन प्रिंटर्स (चेन्नई) को हार्दिक धन्यवाद है ।
इनके अतिरिक्त प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में इस शोधप्रबन्ध के प्रणयन में जो भी सहयोगी बने हैं उन सबके प्रति मैं अपनी हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करती हूं।
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