SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 329
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७७ समाधिमरण क्या है ? किसका होता है ? तथा यह कब, कैसे और क्यों करना चाहिए ? इस पर विचार करेंगे - सकाममरण उत्तराध्ययनसूत्र में सकाममरण किसे कहते हैं इसकी परिभाषात्मक व्याख्या उपलब्ध नहीं होती हैं। उत्तराध्ययनसूत्र की टीका में इसे परिभाषित करते हए कहा गया है कि जो व्यक्ति विषयों के प्रति अनासक्त होने के कारण मरणकाल में भयभीत नहीं होता किन्तु उसे भी जीवन की ही भांति उत्साहपूर्वक अपनाता है, उस व्यक्ति के मरण को सकाममरण कहा जाता है।24 इसे पण्डितमरण भी कहा जाता है सकाममरण का अर्थ सार्थक या सोद्देश्य मरण है। यद्यपि उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार सकाममरण का अर्थ सार्थकमरण है, फिर भी यह शब्द सामान्यतः भ्रमोत्पादक है अर्थात् कामना युक्त मरण का द्योतक है। अतः अग्रिम चर्या में सकाममरण के स्थान पर समाधिमरण शब्द का प्रयोग करना समीचीन होगा। समाधिमरण का प्रयोजन उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार (साधक का मूलभूत प्रयोजन समत्व या वीतरागता की उपलब्धि है। समत्व की उपलब्धि में बाधक तत्त्व ममत्व है मानव की ममता का घनीभूत केन्द्र उसका अपना शरीर होता है। साधना के क्षेत्र में उसके प्रति निर्ममत्व (अनासक्ति) होना अत्यावश्यक है। इस प्रकार देह के प्रति निर्ममत्व की साधना का प्रयास समाधिमरण है। इसकी साधना के लिये उत्तराध्ययनसूत्र आदि ग्रन्थों में एक विशिष्ट प्रक्रिया का प्रतिपादन किया गया है, जो इस प्रकार है - २४ उत्तराध्ययनसूत्र टीका-पत्र २४२ २५ उत्तराध्ययनसूत्र - ३५/२१ । - (शान्त्याचाय)। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy