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एक समय में चार मरण - पूर्वोक्त तीन के साथ भक्तपरिज्ञा, इंगिनी और
पादोपगमन में से एक; एक समय में पांच मरण - पूर्वोक्त चार के साथ वैहायस और गृद्धपृष्ठ में से .
एक बढ़ जाता है। इस प्रकार दृढ़संयमी पण्डितपुरूष के एक साथ पांच मरण हो सकते हैं।
शिथिलसंयमी पण्डित की अपेक्षा
वहां एक साथ पांच मरण हो सकते हैं। भक्तप्रत्याख्यान, इंगिनी और पादोपगमन मरण विशुद्धसंयम वाले पण्डितजन के ही होते हैं। अतः उक्त दोनों प्रकार के पण्डितमरण की विवक्षा में तद्भवमरण नहीं लिया गया है, क्योंकि वे देवगति में ही उत्पन्न होते है।
बालपण्डित जीवों की अपेक्षा एक समय में दो मरण - बालपण्डितमरण तथा अवधिमरण और आत्यन्तिक ..
मरण मे से एक; एक समय में तीन मरण - पूर्वोक्त दो के साथ तद्भवमरण; एक समय में चार मरण - बालपण्डितमरण, अवधिमरण या आत्यन्तिकमरण,
तद्भवमरण एवं वशार्तमरण एक समय में पांच मरण - पूर्वोक्त चार के साथ वैहायस एवं गृद्धपृष्ठ में से एक
पूर्वोक्त सत्रह प्रकार के मरणों को हम उत्तराध्ययनसूत्र में वर्णित मरण के मुख्य दो प्रकारों- अकाममरण एवं सकाममरण में समाहित कर सकते हैं, जैसेवलनमरण, वशार्तमरण, अन्तशल्यमरण, बालमरण ये अकाममरण के अन्तर्गत आ जाते हैं। इसी प्रकार पण्डितमरण, बालपण्डितमरण, केवलीमरण, भक्तपरिज्ञामरण, इंगिनीमरण तथा पादोपगमनमरण ये सकाममरण के ही प्रकार हैं तथा आवीचिमरण, अवधिमरण, अत्यन्तमरण, तद्भवमरण, छद्मस्थमरण ये पांच मरण यदि बालजीवों के होते हैं तो अकाममरण और यदि ज्ञानीजनों के होते हैं तो सकाममरण के अन्तर्गत आ जाते हैं। शेष रही बात वैहायस एवं गृद्धपृष्ट मरण की - इस सन्दर्भ में ज्ञातव्य है कि वैहायस एवं गृद्धपृष्ठ मरण, सामान्यतः बालमरण, अकाममरण प्रतीत होते हैं,
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