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पूर्वोक्त सत्रह प्रकार की मृत्यु में प्रतिपल होने वाला आवीचिमरण सिद्धों के अतिरिक्त सभी संसारी प्राणियों का होता है। एक समय में कितने प्रकार के मरण हो सकते हैं, इसका विवरण उत्तराध्ययननियुक्ति में दिया गया है। नियुक्ति की इन गाथाओं की स्पष्ट व्याख्या की शान्त्याचार्य कृत टीका में उपलब्ध होती है। एक समय में दो, तीन, चार और पांच मरण सम्भव होते हैं। बाल, पण्डित एवं बालपण्डित जीवों की अपेक्षा से उनका विभाजन निम्न प्रकार से किया गया है
बालजीवों की अपेक्षा
बालजीवों का बालमरण तो होता ही है साथ ही अवधि और आत्यन्तिक में से एक मरण होता है। इस प्रकार बालजीवों में दो मरण एक साथ होते हैं। तीन प्रकारों में बाल, अवधि या आत्यन्तिक के साथ साथ तद्भवमरण भी हो सकता है। चार मरण में उपर्युक्त तीन के साथ वशार्तमरण भी होता है तथा पांच मरण में जो आत्मघात करने की स्थिति में सम्भव होते हैं; वैहायस एवं गृद्धपृष्ठ में से एक बढ़ जाता है। बालमरण के अन्तर्गत वलनमरण एवं अन्तशल्यमरण वर्गीकृत कर लिये गये हैं। उनकी अलग करने पर तो बालमरण में एक साथ सात मरण भी हो सकते हैं, किन्तु इस चर्चा में उन्हें अलग से परिगणित नहीं किया गया है।
पण्डितजीवों की अपेक्षा .. पण्डितमरण की विवक्षा दृढ़संयमी-पण्डितमरण एवं शिथिलसंयमीपण्डितमरण इन दो रूपों से की गई है -
दृढ़संयमी पण्डित की अपेक्षा एक समय में दो मरण - पण्डितमरण तथा अवधिमरण या आत्यन्तिक मरण; एक समय में तीन मरण - पण्डितमरण, अवधिमरण या आत्यन्तिकमरण तथा
छद्मस्थमरण या केवलीमरण में से एक;
* उत्तराध्ययननियुक्ति - २२७-२२६ । २० उत्तराध्ययनसूत्र टीका, पत्र - २३७-२३८
- (शान्त्याचाय)।
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