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________________ २७३ (१३) गृद्धपृष्ठमरण गृद्ध आदि से अपने शरीर को नुचवा कर प्राण त्याग करनां गृद्धपृष्ठमरण कहा जाता है। सामान्य अर्थ में गद्ध स्पर्शित अर्थात् गृद्धों का भक्ष्य बनकर मृत्यु को प्राप्त करना गृद्धपृष्ठमरण है। भगवतीसूत्र की टीका में यह बताया गया है कि हाथी आदि के मृत शरीर में प्रविष्ट होकर अपने को गृद्ध आदि पक्षियों द्वारा भक्ष्य बनाकर मृत्यु को प्राप्त करना गृद्धपृष्ठमरण है। (१४) वैहायसमरण (वैखानसमरण) . उत्तराध्ययननियुक्ति के अनुसार वृक्ष आदि किसी उर्ध्वस्थान पर फांसी लगाकर मृत्यु को प्राप्त करना वैखानसमरण है। भगवतीसूत्र की वृत्ति के अनुसार वृक्ष की शाखा पर फांसी लगाकर, पर्वत से गिरकर या नदी आदि में ऊपर से कूदकर मृत्यु को प्राप्त करना वैखानसमरण है। इसका तात्पर्य यह है कि स्वेच्छा से पूर्वोक्त प्रकारों से शरीर को त्याग देना वैखानसमरण है। शब्दकल्पद्रुम में वैखानस का अर्थ वानप्रस्थ अवस्था भी किया गया है।" अतः वैदिकपरम्परा में गिरिपतन आदि जो वानप्रस्थों की मरण की विधि है उसी को जैनपरम्परा में वैखानसमरण कहा गया है। भगवती आराधना की विजयोदया टीका में वैखानसमरण के स्थान पर विप्रणासमरण का उल्लेख हुआ है। (१५) भक्तपरिज्ञामरण (१६) इंगिणीमरण (१७) और पादोपगमन मरण ___ इन तीनों की चर्चा समाधिमरण के सन्दर्भ में आगे इसी अध्याय में विस्तार से की गई है। वस्तुतः ये तीनों समाधिमरण के ही प्रकार हैं। १३ 'गिलाइमक्खणं, गिडपिट्ठा १४ भगवती वृत्ति-पत्र । १५ 'उबंधणाइ वेडास' १६ 'वृक्षशाखायुदबंधनेन यत्तन्निक्तिवशाहहानसम्।' १७ शब्दकल्पदुम - चतुर्थ भाग पृष्ठ ५०८ । विजयोदयावृत्ति पत्र १० - उत्तराध्ययननियुक्ति २२३ । - उत्तराध्ययनसूत्र नियुक्ति गाथा २२३ । - भगवती वृत्ति, पत्र २१। - (उद्धत् उत्तराज्अयणाणि, भाग ), पृष्ठ १३१,-युवाचार्य महाप्रब). Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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