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________________ २७२ (८) बालमरण बाल अर्थात् अज्ञानी, अबोध, मिथ्यादृष्टि, असंयमी आदि के मरण को बालमरण कहा जाता है। भगवतीसूत्र में इसके बारह प्रकार बतलाये गये हैं।" (इसकी विस्तृत विवेचना 'अकाममरण' शीर्षक के अन्तर्गत इसी अध्याय में आगे द्रष्टव्य है)। (६) पण्डितमरण संयमी व्यक्ति के मरण को पण्डितमरण कहा जाता है (इसकी विस्तृत विवेचना इसी अध्याय में आगे सकाममरण शीर्षक के अन्तर्गत है )। (१०) बालपण्डितमरण देशविरत सम्यकदृष्टि जीवों का मरण बालपण्डितमरण होता है। क्योंकि ये स्थूल हिंसा आदि से विरत रहने के कारण पण्डित, किन्तु सूक्ष्म हिंसा से विरत नहीं होने से बाल कहलाते हैं। इस प्रकार बालपण्डित अर्थात् देशविरतजीवों का मरण बालपण्डितमरण है। (११) छद्मस्थमरण मनःपर्यवज्ञानी (ऋजुमति), अवधिज्ञानी, श्रुतज्ञानी और मतिज्ञानी जीव के मरण को छद्मस्थमरण कहा जाता है। क्योंकि ये चारों छद्मस्थ अवस्था में मृत्यु को प्राप्त करते हैं। (१२) केवलीमरण केवलज्ञानी की आत्मा का देह से वियोग केवलीमरण कहलाता है। १ भगवती - २४६ - १२ 'मणपज्जयोहिनाणी, सुअमइनाणी मरंति जे समणा' - (अंगसुत्ताणि, लाडनूं, खंड २, पृष्ठ ८६) - उत्तराध्ययननियुक्ति - २२२ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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