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ज्ञान दर्शन से संपन्न है। बाह्य भाव सब सांयोगिक हैं अशाश्वत् हैं। उत्तराध्ययनसूत्र के 'नमिराजर्षि अध्ययन में एकत्व भावना का सजीव वर्णन किया गया है।
एकत्व भावना के चिन्तन से ही नमिराजा विरक्त हुए थे। वे एक बार दाहज्वर से पीड़ित हो गये । उनके उपचार के लिए रानियां स्वयं चन्दन घिसने लगीं । रानियों के हाथों के कंगन परस्पर टकराने लगे। उनसे उत्पन्न आवाज ने राजा को परेशान कर दिया। तब रानियों ने सौभाग्यसूचक एक-एक कंगन बचाकर शेष सारे कंगन उतार दिये। एक-एक कंगन के रहने से आवाज बन्द हो गयी। इस घटना से राजा आत्मिक चिन्तन में डूब गये। वे सोचने लगे; जहां अनेक हैं, वहां संघर्ष है, अशान्ति है। जहां एक है वहां शान्ति है। एकत्व की अनुभूति में कोई संघर्ष नहीं है। जहां जीव शरीर, परिवार, धन, सम्पत्ति आदि सांयोगिक वस्तुओं पर ममत्व का आरोपण करता है, उनसे जुड़ता है, वहां अशान्ति उत्पन्न हो जाती है। अतः एकत्व की अनुभूति में ही शान्ति निहित है।
. एकत्व भावना के सन्दर्भ में यह भी कहा गया है कि दस लाख योद्धाओं पर विजय प्राप्त करने की अपेक्षा स्वयं की आत्मा पर विजय प्राप्त करना परम विजय है। जो जीव, मन, पांचों इन्द्रियों तथा क्रोध, मान, माया और लोभ इन चारो कषायों को जीत लेता है, वह सभी को जीत लेता है।
- इस प्रकार एकत्व भावना से आत्मपूर्णता की उपलब्धि होती है। इससे व्यक्ति अपनी आत्मशक्ति से परिचित होता है। एकत्व की अनुभूति के साथ अन्यत्व अर्थात् अन्य से पृथक्त्व का बोध भी आवश्यक है। अतः एकत्व भावना के पश्चात् अन्यत्व भावना का क्रम आता है।
(५) अन्यत्व भावना एकत्व भावना जहां व्यक्ति को एकत्व की अनुभूति कराती है वहीं अन्यत्व भावना पृथक्त्व का बोध कराती है। यह स्व-पर के बीच रही भेद रेखा को सूचित करती है। वस्तुतः यह आत्म-अनात्म या स्व-पर का विवेक सिखाती है।
६५ रात्रिसंथारा गाथा । ६६ उत्तराध्ययनसूत्र ६/३४ । 50 नगायनमत्र २3/3E |
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