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हाथ की कठपुतली बनने वाले धन को धिक्कार है। इस सन्दर्भ में अंग्रेजी में एक सटीक कहावत है- 'Riches have wings' अर्थात् धन – वैभव के पंख होते हैं।
मनुष्य जीवन सम्बन्धी समग्र अनित्यता का संक्षिप्त में सारगर्भित वर्णन करते हुए अनुत्तरोपपातिकदशांगसूत्र' में कहा गया है -
___ यह मनुष्यजीवन जन्म, यश, मरण, रोग, व्याधि आदि अनेक शारीरिक तथा मानसिक दुःखों से युक्त है। यह अध्रुव, अनित्य और अशाश्वत है। सन्ध्याकालीन रंगों, पानी के बुलबुलों तथा कुशाग्र पर स्थित जलबिन्दुओं की तरह अस्थिर है, स्वप्नदर्शन एवं बिजली की चमक जैसा चंचल और अनित्य है।
अनित्य भावना के चिन्तन से व्यक्ति का वस्तु के प्रति ममत्व कम होता है। यह बोध होता है कि ये शरीर, सम्पत्ति आदि सब अशाश्वत हैं। पुद्गल का स्वभाव बनना-बिगड़ना है। इसमें संयोग वियोग का क्रम सतत चलता रहता है। जो मिलता है वह बिछुड़ता भी है। इसलिये उस पर ममत्व या आसक्ति रखना उचित नहीं है।
___ . इस प्रकार अनित्य भावना के चिन्तन का मूलभूत उद्देश्य शरीर, सत्ता, सम्पत्ति आदि के प्रति आसक्ति का उच्छेद करना है। जो क्षणिक और नश्वर हो, जिसका वियोग अपरिहार्य हो उसके प्रति आसक्ति रखना उचित नहीं है। यही अनित्य भावना का सन्देश है।
रण भावना
. अनित्य भावना के पश्चात् अशरण भावना का क्रम है। व्यक्ति स्वयं की सुरक्षा के लिये किसी की शरण प्राप्त करना चाहता है। पर इस संसार में कोई किसी का शरण भूत नहीं हो सकता; इसका बोध कराना ही अशरण भावना का प्रयोजन है। सांसारिक पदार्थ अनित्य होते हैं और अनित्य एवं नश्वर वस्तु कभी शरणभूत नहीं हो सकती। जिस प्रकार अस्थिर नींव पर भवन खड़ा नहीं किया जा सकता; उसी प्रकार जो स्वयं अनित्य या नश्वर हो वह किसी का शरणभूत नहीं हो सकता।
५२ अनुत्तरोपपातिक ३/१/५
- उद्धृत् प्राकृतसूक्तिकोश - पृष्ठ १६ ।
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