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________________ मूढ़ शब्द का एक साथ प्रयोग हुआ है। 26 सामान्यतः ये तीनों शब्द पर्यायवाची प्रतीत. होते हैं, किन्तु उत्तराध्ययनसूत्र की टीका में इनके अर्थ को स्पष्ट करते हुए 'बाल' का अर्थ अज्ञानी, 'मन्द' का अर्थ धर्मकार्य में अनुद्यत तथा 'मूढ़' का अर्थ मोह से आकुल किया गया है।27 बालजीव की जीवनचर्या उत्तराध्ययनसूत्र में बालजीवों की . जीवन-चर्या का वर्णन करते हुए कहा गया है कि बालजीव कामभोगों में आसक्त होकर अत्यन्त क्रूर कर्म करता है। वह सप्रयोजन अथवा निष्प्रयोजन त्रस एवं स्थावर जीवों की हिंसा करता रहता है । वह स्त्री और धन में आसक्त होकर केंचुए की तरह कर्ममल का संचय करता है। 28 २४६ वह स्त्री और विषय भोगों में आसक्त रहने वाला, महारम्भ और महापरिग्रह वाला, दूसरों को सताने वाला मदिरा एवं मांस का सेवन करने वाला होता है। 29 भोगों में निमग्न वह अपने हित और निःश्रेयस (मोक्ष) की उपेक्षा करता है। वह श्रेय अर्थात् कल्याणकारी मार्ग को छोड़कर प्रेय मार्ग को स्वीकार करता है। फिर चाहे वह प्रेय उसका अहितकारी ही क्यों न हो। 30 बालजीवों की मानसिकता - उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार बालजीव परलोक में विश्वास नहीं करते हैं। वे सोचते हैं कि परलोक किसने देखा; अतः परलोक की चिन्ता में प्रत्यक्ष हस्तगत सुख ( काम - भोग) का त्याग करना निरी मूर्खता है। " अज्ञानी जीव सोचता है कि संसार में मैं अकेला ही भोगी हूं ऐसा तो नहीं है और हजारों लोग भी तो भोग-परायण हैं। अतः जो सबकी गति होगी वही मेरी भी गति हो जायेगी। 2 इस प्रकार उसके मन में दुष्कर्मों के प्रति भय नहीं रहता । अज्ञानी २६ उत्तराध्ययनसूत्र ८/५ । २७ उत्तराध्ययनसूत्र टीका पत्र २६२ २८ उत्तराध्ययनसूत्र ५/४, ८ एवं १० । २६ उत्तराध्ययनसूत्र ७/६ । ३० उत्तराध्ययनसूत्र ५/६ । ३१ उत्तराध्ययनसूत्र ५/५ एवं ६ । ३२ उत्तराध्ययनसूत्र ५/७ Jain Education International - ( शान्त्याचार्य) । - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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