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नासिका गन्ध को ग्रहण करती है, अतः गन्ध नासिका का विषय है। सुगन्ध राग एवं दुर्गन्ध द्वेष का कारण है। जैसे मनोज्ञ गन्ध में मूच्छित सर्प बिल से निकलता है और मारा जाता है; वैसे ही गन्ध में आसक्त जीव दुःखद मृत्यु को प्राप्त करता है।
सुगन्ध में आसक्त जीव अनेक प्रकार से त्रस एवं स्थावर जीवों की हिंसा करता है और उन्हें त्रास एवं पीड़ा पहुंचाता है। वह सुगन्धित पदार्थों को प्राप्त करने, उनके संरक्षण तथा उनके व्यय एवं वियोग न होने की चिन्ता करता है। वह सम्भोग-काल में भी अतृप्त रहता है, फिर उसे सुख कहां ? गन्ध में आसक्त जीव झूठ, कपट व चोरी का आचरण करता है और परिणामस्वरूप दुःख को प्राप्त करता है।
रसनेन्द्रिय रस को ग्रहण करती है अतः रसनेद्रिन्य का ग्राह्य विषय रस है। मनोज्ञ रस राग का कारण एवं अमनोज्ञ रस द्वेष का कारण है। जिस प्रकार मांस खाने को आतुर मत्स्य कांटे में फंसकर मारा जाता है; उसी प्रकार रस-लोलुपी व्यक्ति अकालमरण को प्राप्त करता है। रस लोलुप जीव हिंसा करता है, अन्य जीवों को परिताप पहुंचाता है और अन्ततः स्वयं भी दुःख को प्राप्त करता है। रसप्रद साधनों को जुटाने तथा उनके रक्षण की चिन्ता में सदा डूबा रहता है ।
शरीर स्पर्श को ग्रहण करता है अतः स्पर्शेन्द्रिय का ग्राह्य विषय स्पर्श है। मनोनुकूल स्पर्श राग एवं मन के प्रतिकूल स्पर्श द्वेष का कारण होता है। जो जीव सुखद स्पर्श में आसक्त हैं वह तालाब के शीतल जल के लोभ में पड़ी हुई मगरमच्छ द्वारा ग्रसित भैंस के समान शीघ्र मृत्यु को प्राप्त करते हैं। स्पर्श में आसक्त जीव हिंसा करता है, झूठ बोलता है, चोरी करता है और अन्ततः दुःख को प्राप्त करता है। वह स्पर्शेन्द्रिय को तृप्त करने वाली वस्तुओं के अर्जन एवं संरक्षण अथवा उनका वियोग न हो इसलिये चिन्तित रहता है। वस्तुतः वह उनके भोग काल में अतृप्त ही रहता है अतः उसे सुख कहाँ ?
मन भाव को ग्रहण करता है। अतः मन का ग्राह्य विषय भाव है। मन के अनुकूल भाव राग एवं मन के विपरीत भाव द्वेष के कारण हैं। जो मन के विषय में आसक्त जीव हैं वे हथिनी के प्रति आकृष्ट हाथी की तरह विनाश को प्राप्त होते हैं। भावों (विकारों) के पीछे मूच्छित जीव अनेक प्रकार के छल, कपट, झूठ, हिंसा
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