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________________ जीवन में दुःखों की यथार्थता को स्वीकार करते हुए भी उनसे विमुक्ति की प्रेरणा देता आठवें अध्याय में समाधिमरण की अवधारणा की चर्चा की गई है। इसमें समाधिमरण का प्रयोजन, उसकी परिस्थिति, प्रक्रिया एवं प्रकारों की विस्तार से चर्चा की गई है और अन्त में यह सिद्ध किया गया है कि समाधिमरण आत्महत्या नहीं है। प्रस्तुत कृति का नवम अध्ययन उत्तराध्ययन के साधनात्मक पक्ष मोक्षमार्ग का विवेचन करता है। इस अध्याय के प्रारम्भ में जैनदर्शन में प्रतिपादित द्विविध से लेकर पंचविध मोक्षमार्ग सम्बन्धी विभिन्न अवधारणायें प्रस्तुत की गई है, साथ ही इसमें दर्शन, ज्ञान और चारित्र की पूर्वापरता के. प्रश्न को लेकर दार्शनिक दृष्टि से गंभीर चर्चा भी की गई है। इसके पश्चात् सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन, सम्यकचारित्र और सम्यकतप के स्वरूप, प्रकार आदि का विस्तृत विवेचन किया गया है। प्रस्तुत शोधप्रबंध का दसवां अध्याय श्रमण आचार का विवेचन करता है। इस अध्याय के प्रारंभ में भगवान पार्श्वनाथ के चातुर्याम से भगवान महावीर स्वामी के पंचमहाव्रत रूप धर्म का विकास कैसे हुआ, यह दर्शाते हुए इसमें पंचमहाव्रत, पंचसमिति, तीनगुप्ति, मुनि की दैनिक सामाचारी और दशविध सामाचारी का भी विवेचन किया गया है। इसके साथ ही इसमें बाईस परीषह, दशविध श्रमणधर्म, षट् आवश्यक आदि की भी चर्चा की गई है। इस अध्याय के अन्त में श्रमणाचार के विवादित प्रश्न सचेल-अचेल का उत्तराध्ययन के तेवीसवें अध्ययन के आधार पर समीक्षात्मक विवेचन प्रस्तुत किया गया है। . . प्रस्तुत कृति का ग्यारहवां अध्याय श्रावकाचार का विवेचन करता है। इसमें सप्तदुर्व्यसन, पैंतीस मार्गानुसारी गुण, श्रावक के बारह व्रत और ग्यारह प्रतिमाओं की चर्चा की गई है। ज्ञातव्य है कि उत्तराध्ययन में श्रावकाचार का विस्तृत विवेचन उपलब्ध नहीं होता है। अतः इस अध्याय की विषय सामग्री के लिए मूलतः उपासकदशांग और दशाश्रुतस्कन्ध जैसे अन्य आगमों का ही आधार लेना पड़ा है। इस अध्याय में श्रमण जीवन एवं गृहस्थ जीवन की श्रेष्ठता के प्रश्न को लेकर उत्तराध्ययन के प्रकाश में विशेष रूप से यह दिखाया गया है कि उत्तराध्ययनसूत्र श्रमण आचार को प्रमुखता देते हुए भी गृहस्थ धर्म की महत्ता को स्वीकार करता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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