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________________ (२) कल्पातीत वैमानिक देव- जहां स्वामी सेवक, बड़े छोटे आदि के व्यवहार का सर्वथा अभाव हो वे कल्पातीत देव हैं । इनके दो प्रकार हैं ग्रैवेयकवासी और अनुत्तर विमानवासी .99 २०६ • ग्रैवेयक - ग्रीवा (गर्दन) अर्थात् लोकपुरूष के ग्रीवास्थान में निवास करने वाले देव ग्रैवेयक नाम से प्रसिद्ध हैं। यद्यपि आगमों में स्पष्ट रूप से कहीं भी लोकपुरूष की अवधारणा उपलब्ध नहीं होती है तथापि लगभग दसवीं शताब्दी के पश्चात् जैन ग्रन्थों में लोक के संस्थान के सन्दर्भ में लोकपुरूष की कल्पना उपलब्ध होती है। फिर भी ग्रैवेयक शब्द का प्रयोग उत्तराध्ययनसूत्र जैसे प्राचीन आगम में होने से हमें यह मानना होगा कि प्राचीन काल में भी जैनपरम्परा में वैदिकपरम्परा के प्रभाव से कहीं न कहीं लोकपुरूष की अवधारणा अवश्य रही होगी अन्यथा देवों की इस चर्चा में ग्रैवेयक शब्द का प्रयोग नहीं होता । परवर्ती ग्रन्थों में लोकपुरूष की चर्चा करते हुए ग्रैवेयकों को लोकपुरूष का ग्रीवास्थानीय मानने के साथ यह भी माना है कि नौ ग्रैवयकों में तीन ग्रैवेयक समानान्तर रूप से नीचे हैं। मध्य में तीन ग्रैवेयक हैं. और फिर उनके ऊपर तीन ग्रैवेयक हैं। 100 इस प्रकार ग्रैवेयक तीन-तीन के वर्ग में लोकपुरूष की ग्रीवा के नीचे, मध्य में एवं ऊपर स्थित हैं । किन्तु उत्तराध्ययनसूत्र में ग्रैवेयक की जो चर्चा है उसे देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि नौ ही ग्रैवेयक क्रमशः एक दूसरे के ऊपर हैं। उनकी अवस्थिति इस प्रकार है- तीन ग्रैवेयकों का जो प्रथम वर्ग है उसमें क्रमशः नीचे, मध्य में और ऊपर ऐसे तीन ग्रैवेयक हैं। इसी प्रकार मध्य में जो तीन ग्रैवेयकों का वर्ग है उसमें नीचे, मध्य में एवं ऊपर ऐसे तीन ग्रैवेयक हैं एवं ऊपर के तीन ग्रैवेयकों का वर्ग है उसमें भी नीच, मध्य में एवं ऊपर ऐसे तीन ग्रैवेयक हैं। इस प्रकार पूर्वोक्त विवेचन से ऐसा लगता है कि नवग्रैवेयक तीन-तीन के विभाग में होकर भी क्रमशः एक दूसरे के ऊपर ही स्थित हैं, उत्तराध्ययनसूत्र में नवग्रैवेयक के नाम निम्न प्रकार से दिये गये हैं ६६ उत्तराध्ययनसूत्र ३६ / २१२ । १०० तत्त्वार्थसूत्र Jain Education International • सुखलालजी, पृष्ठ १०४ । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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