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(१) अधस्तन-अधस्तन (२) अधस्तन-मध्यम (३) अधस्तन-उपरितन (४) मध्यम-अधस्तन (५) मध्यम-मध्यम (६) मध्यम-उपरितन (७) उपरितन-अधस्तन (८) उपरितन-मध्यम और (६) उपरितन-उपरितन।
पांच अनुत्तरविमान्- इनमें रहनेवाले देव कल्पातीत कहलाते हैं। इन देवलोकों में केवल सम्यकदृष्टि आत्मा ही रहती है। अनुत्तर अर्थात् जिससे उत्तर कुछ न हो। अनुत्तरविमान के पांच प्रकार हैं- (१) विजय (२) वैजयन्त (३) जयन्त (४) अपराजित और (५) सर्वार्थसिद्ध । 02
इस प्रकार उत्तराध्ययनसूत्र में आत्ममीमांसा सम्बन्धी चर्चा विस्तृत रूप से की गई है।
१०१ 'हद्विमा हेट्ठिमा चेव, हेहिमामधिमा घेवा ।
हेडिमाउवरिमा वेव, मजिप्रमाहेडिमा तहा ।।२१३।। मज्झिमामग्निमा वेव मधिमा उवरिमा तहा । उवरिमा हेट्ठिमा चेव, उवरिमामजिममा तहा ।।२१४।।
उवरिमा उवरिमा चेव, इय गेविज्जगा सुरा ।' १०२ उत्तराध्ययनसूत्र ३६/२१५ एवं २१६. ।
- उत्तराध्ययनसूत्र ३६/२१३, २१४, २१५ ।
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