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(३) खेचर- आकाश में विचरण करने वाले जीव खेचर कहलाते हैं। उत्तराध्ययनसूत्र में इनके चार प्रकार बतलाये गये हैं। (क) चर्मपक्षी- चमड़ी की पांखों वाले जीव चर्मपक्षी जीव कहलाते हैं, जैसे
चमगादड़ आदि। (ख) रोमपक्षी- रोम की पांख वाले जीव रोमपक्षी जीव कहलाते हैं, जैसे
हंस आदि। (ग) समुद्गपक्षी- जिनके पंख समुद्गक अर्थात् डिब्बे के आकार के समान सदैव
बन्द रहते हैं, वे समुद्गपक्षी कहलाते हैं। (घ) विततपक्षी- जिनके पंख सदा खुले हुए रहते हों, वे विततपक्षी कहलाते हैं।
समुद्गपक्षी एवं विततपक्षी, मनुष्य लोक के बाहर के द्वीप-क्षेत्रों में पाये जाते हैं।
(3) मनुष्य - मनुष्य योनि में उत्पन्न होने वाले जीव मनुष्य कहलाते हैं। उत्पत्ति की अपेक्षा से इनके भी दो प्रकार हैं- सम्मूर्छिम एवं गर्भोत्पन्न। क्षेत्र की अपेक्षा से तीन भेद हैं- कर्मभूमिज, अकर्मभूमिज, एवं अन्तर्वीपज। कर्मभूमिज मनुष्यों के पन्द्रह, अकर्मभूमिज मनुष्यों के तीस एवं अन्तर्वीपज मनुष्यों के अट्ठाईस भेद हैं। (क) कर्मभूमिज- जिस क्षेत्र में व्यक्ति स्वपुरूषार्थ के आधार पर जीवन का निर्वाह
करता हो वह क्षेत्र कर्मभूमि कहलाता है तथा उस क्षेत्र में जन्म लेने वाले ___ मनुष्य कर्मभूमिज कहलाते हैं। (ख) अकर्मभूमिज- जिस क्षेत्र में व्यक्ति का जीवन पूर्णतः प्रकृति पर आधारित
होता है, वह क्षेत्र अकर्मभूमि क्षेत्र कहलाता है। इन क्षेत्रों में समाजव्यवस्था, राजव्यवस्था, धर्मव्यवस्था तथा असि, मसि, कृषि सम्बन्धी व्यापार का अभाव होता है। इनमें रहने वाले जीवों की आवश्यकतायें कल्पवृक्षों (सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाले वृक्षों) के द्वारा पूरी होती हैं।
१६ उत्तराध्ययनसूत्र ३६/१८८ । १७ वही ३६/१६५, १६६ एवं १६७ ।
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