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जीवों के जल, पृथ्वी एवं आकाश में गति करने की अपेक्षा से पुनः तीन-तीन भेद किये गये हैं (१) जलचर (२) थलचर एवं (३) खेचर (१) जलचर- जल में चलने फिरने और रहने वाले जीव जलचर कहलाते हैं। उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार जलचर जीव पांच प्रकार के हैं। मत्स्य, कच्छप, ग्राह, मकर एवं शुषुमार। वर्णादि की अपेक्षा से इनके असंख्यात भेद हैं। (२) थलचर- पृथ्वी पर चलने फिरने रहने वाले जीव थलचर जीव कहलाते हैं। उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार इनके मुख्य दो भेद हैं-चतुष्पद अर्थात् चार पांव वाले एवं परिसर्प अर्थात् रेंगकर चलने वाले। पुनः चतुष्पद के चार भेद एवं परिसर्प के दो भेद किये गये हैं।
थलचर के भेद (क) एकखुर- जिनके पांव के नीचे एक खुर अर्थात् एक रेखा हो वे एक खुर
. वाले जीव हैं, जैसे अश्व आदि । (ख) द्विखुर- जिनके पांव के नीचे दो खुर/दो रेखा हों वे द्विखुर जीव कहलाते
हैं, जैसे बैल आदि। (ग) गण्डींद- वर्तुलाकार पांव वाले जीव गण्डींद जीव कहलाते हैं । जैसे हाथी
आदि। (घ) सनखपद- जिनके पांव नख युक्त हैं वे सनखपद जीव कहलाते हैं ।
जैसे सिंह आदि। परिसर्प जीव दो प्रकार के हैं(क) भुजपरिसर्प - भुजा के सहारे गति करने वाले जीव भुज परिसर्प कहलाते
हैं, जैसे गोधा, छिपकली, चूहा आदि। (ख) उरःपरिसर्प- वक्षस्थल के सहारे रेंगने वाले जीव उर: परिसर्प जीव कहलाते
हैं, जैसे-सांप आदि।
८३ उत्तराध्ययनसूत्र ३६/१७१। ८४ उत्तराध्ययनसूत्र ३६/१७२ एवं १७८ । ८५ उत्तराध्ययनसूत्र ३६/१७६, १६० एवं ११।
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