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________________ १६४ हिंसा का वर्णन किया है। अतः इस सन्दर्भ में यह भी माना जाता है कि आचारांग के अनुसार वायुकायिक जीव स्थावर न होकर त्रस हैं क्योंकि यदि आचारांगकार को वायुकायिक जीवों को स्थावर मानना होता तो वे उनका उल्लेख त्रसकाय के पूर्व करते। उत्तराध्ययनसूत्र की तरह आचारांगसूत्र के प्रथम श्रुतस्कंध में भी पृथ्वी, वायु, अप, अग्नि और वनस्पति के पश्चात् त्रस का उल्लेख मिलता है। इसके आधार पर त्रस के अतिरिक्त शेष पांचो को स्थावर माना जा सकता है। (ग) ऋषिभाषितसूत्र ऋषिभाषितसूत्र भी एक प्राचीन ग्रन्थ है, उसमें भी षट्जीवनिकाय का उल्लेख मिलता है परन्तु उसमें त्रस एवं स्थावर के वर्गीकरण की स्पष्ट चर्चा अनुपलब्ध है। (घ) स्थानांगसूत्र ___ स्थानांगसूत्र में प्राप्त षट्जीवनिकाय के वर्गीकरण में त्रस के अन्तर्गत स्पष्ट रूप से अग्निकाय एवं वायुकाय का स्वीकार किया गया है। (ङ) दशवैकालिकसूत्र ____ दशवैकालिकसूत्र के चतुर्थ अध्ययन का नाम 'षट्जीवनिकाय' है वहां त्रस एवं स्थावर के भेद का विवेचन हमें प्राप्त नहीं होता है। उसमें दिया गया षट्जीवनिकाय का क्रम पृथ्वी, अप्, अग्नि, वायु और वनस्पति को स्थावर के रूप में मानने का संकेत मिलता है।" ३६ व्यक्तिगत चर्चा के आधार पर। ४० स्थानांग ३/२/३२६ एवं ३२७ ४१ दशवकालिक सूत्र ४/३। - (अंगसुत्ताणि, लाडनूं, खण्ड १, पृष्ठ ५६६) । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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