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________________ भूमिका उत्तराध्ययनसूत्र जैन आगम साहित्य का एक प्राचीन एवं महत्त्वपूर्ण आगम है, यह जैन आचार एवं सिद्धान्त का प्रतिनिधि ग्रन्थ है। इसमें जहां एक ओर विद्वद जनोचित जैनदर्शन के विविध दार्शनिक पक्षों का वर्णन उपलब्ध होता है, वहीं दूसरी ओर जनसामान्य के नैतिक जीवन व्यवहार से सम्बन्धित उपदेशात्मक सामग्री भी उपलब्ध होती है। जैन धर्म के श्वेताम्बरं सम्प्रदाय में 'उत्तराध्ययनसूत्र' विशेष रूप से प्रचलित है। श्वेताम्बर सम्प्रदाय में सामान्यतया इसके नियमित स्वाध्याय की परम्परा है। दिगम्बर और यापनीय सम्प्रदायों में अंगबाह्य आगम के रूप में इसकी मान्यता तो रही है किन्तु वे इसके उपलब्ध संस्करण को नहीं मानते हैं। यही नहीं इसकी विशेषताओं के कारण यह शोधकर्ताओं के आकर्षण का विषय भी रहा है। प्रस्तुत शोध में मेरा प्रयोजन पूर्व शोधकर्ताओं के लेखन की पुनरावृत्ति करना नहीं है पर इसमें निहित आज तक अस्पृष्ट विशेषताओं को उजागर करना है । इस शोधकार्य की अपनी कुछ विशेषताएं हैं । इसमें उत्तराध्ययनसूत्र के दार्शनिक पक्षों और उनके ऐतिहासिक विकास क्रम पर विशेष बल दिया है साथ ही इसमें उत्तराध्ययनसूत्र की अवधारणाओं की युगीन प्रासंगिकता की चर्चा भी की गई है। जैन दार्शनिक अवधारणाओं का जैन आगमों के आलोक में अध्ययन करना तथा वर्तमान में उनकी सार्थकता पर विचार करना आवश्यक है। .. आज मानव के सामने अनेक ज्वलंत समस्यायें हैं। सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, वैचारिक, धार्मिक, साम्प्रदायिक विषमताओं ने समाज की सुख शान्ति को भंग कर. दिया है। इन आधुनिक समस्याओं का उत्तराध्ययनसूत्र के आलोक में समाधान खोजने का प्रयास भी इस शोधप्रबंध में हमने किया है। - शोध के लिए अंग्रेजी में रिसर्च (Research) शब्द का प्रयोग होता है। रिसर्च (Research) शब्द का शाब्दिक अर्थ पुनः खोज करना है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि शोध का सम्बन्ध वर्तमान से ही नहीं अपितु अतीत से भी है। वह वर्तमान में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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