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प्रो. रवीन्द्रकुमार जैन, शास्त्री,.
एम.ए.डी.लिट्. शुभ-कामना
स्वनाम धन्य साध्वी श्री विनीतप्रज्ञा जी का यह शोध कार्य मौलिकता, . प्रासंगिकता एवं प्रेषणीयता के स्तर पर अपना एक नया कीर्तिमान स्थापित करता है । आज समस्त विश्व अनिश्चय, क्षण जिजीविषा एवं विघटित जीवनमूल्यों की छाया में सांस ले रहा है । वह आध्यात्मिक एवं भैतिक जीवनमूल्यों के सन्तुलन को प्रायः नकार चुका है । आस्तिक मूल्य अपनी महत्ता खो चुके हैं । हम नकली और . घटिया जीवन के आदी हो चुके हैं । ऐसी स्थिति में केवल हमारे प्राचीन आमम ग्रन्थ . ही हमारा उद्धार कर सकते हैं । हमारे 45 आगम ग्रन्थों में सूत्र ग्रन्थों की और उनमें भी उत्तराध्ययनसूत्र की अनुपमता आज भी बनी हुई है ।।
___ साध्वी जी ने यह व्याख्यापरक एवं साम्य-वैषम्य मूलक ग्रन्थ रचकर वस्तुतः एक चिर अपेक्षित आवश्यकता की पूर्ति की है । साध्वी जी व्यक्ति से व्यक्तित्त्व बनकर इस कृति में उभरी हैं । मुझे विश्वास है उनके इस सारस्वत गुणात्मक व्यक्तित्त्व से अनेक ग्रन्थ जन्म लेंगे ।
___ यह ग्रन्थ प्रधान साध्वी हेमप्रभाश्री जी म.सा. की सत्प्रेरणा एवं श्री चन्द्रप्रभु जैन जूना मंदिर ट्रस्ट के सहयोग से प्रकाशित हो रहा है, यह अनुकरणीय उदाहरण है।
विनीत रवीन्द्रकुमार जैन
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