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(११) प्रत्येकबुद्धसिद्धः बाह्य निमित्त से बोधि प्राप्त कर मोक्ष जाने वाले
जीव प्रत्येकबुद्धसिद्ध कहे जाते हैं। (१२) स्वयंबुद्धसिद्ध : बाह्य निमित्त के बिना स्वयं ही बोधि प्राप्त कर
मुक्त होने वाले जीव स्वयंबुद्धसिद्ध होते हैं। (१३) बुद्धबोधितसिद्धः बुद्ध अर्थात् आचार्य गुरू आदि के द्वारा प्रतिबोधित
होकर मुक्त होने वाले जीव बुद्धबोधितसिद्ध
कहलाते हैं। (१४) एकसिद्ध : एक समय में स्वयं अकेले ही सिद्ध होने वाले
. जीव एकसिद्ध जीव होते हैं। (१५) अनेकसिद्ध : एक समय में अनेक आत्माओं के साथ मोक्ष
जाने वाले जीव अनेकसिद्ध कहे जाते हैं। उत्तराध्ययनसूत्र में छः प्रकार के सिद्धों का उल्लेख है तथा परवर्ती ग्रन्थों में सिद्धों के पन्द्रह भेदों का उल्लेख है। उत्तराध्ययनसूत्र में जिन (तीर्थंकर) सिद्ध, अजिन (अतीर्थंकर) सिद्ध, तीर्थसिद्ध, अतीर्थसिद्ध, प्रत्येकबुद्धसिद्ध, स्वयंबुद्धसिद्ध, बुद्धबोधितसिंच, एकसिद्ध एवं अनेकसिद्ध का स्पष्ट उल्लेख नहीं है; किन्तु इनसे उसका कोई अन्तर्विरोध भी नहीं है; क्योंकि स्त्री या पुरूष होने पर भी उक्त सभी सम्भावनायें तो उनमें निहित हैं ही।
... सामान्यतया स्त्रीलिंग से तीर्थंकरसिद्ध या प्रत्येकबुद्धसिद्ध होने की सम्भावनायें अल्प ही होती हैं, फिर भी अपवाद रूप में तो स्त्री भी तीर्थकर एवं स्वयं सम्बुद्ध भी होती है। नपुंसक प्रत्येक बुद्ध होते हैं या नहीं इस सम्बन्ध में स्पष्ट निर्देश प्राप्त नहीं होते हैं। यहां यह भी ज्ञातव्य है जैसे स्त्रीलिंगसिद्ध में पुरूषलिंगसिद्ध एवं नपुंसकलिंगसिद्ध का अभाव होता है; उसी प्रकार पुरूषलिंगसिद्ध में स्त्रीलिंगसिद्ध और नपुंसकलिंगसिद्ध का तथा नपुंसकलिंगसिद्ध में पुरुषलिंगसिद्ध एवं स्त्रीलिंगसिद्ध का अभाव होता है। इसी प्रकार बुद्धबोधितसिद्ध में अजिनसिद्ध, तीर्थसिद्ध, अतीर्थसिद्ध, एकसिद्ध या अनेकसिद्ध होने की सम्भावनाएं तो हैं ही। पुनश्च स्वलिंगसिद्ध में भी उपर्युक्त नौ ही प्रकार समाविष्ट हो सकते हैं । अन्यलिंगसिद्ध में स्वलिंगसिद्ध, गृहस्थलिंगसिद्ध एवं तीर्थकरसिद्ध इन तीन भेदों को छोड़कर अन्य सम्भावनाएं तो घटित हो सकती हैं तथा गृहस्थलिंगसिद्ध में अजिनसिद्ध, तीर्थसिद्ध, अतीर्थसिद्ध, एकसिद्ध, अनेकसिद्ध आदि भेदों का अन्तर्भाव हो सकता है। इस प्रकार
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