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के अन्य भेदों का भी समोवश हो जाता है। 24 अतः सिद्धों के १५ भेदों का समावेश भी उत्तराध्ययनसूत्र में वर्णित छः भेदों में हो सकता है। यहां हम संक्षेप में सिद्धों के १५ भेदों का वर्णन करना आवश्यक समझते हैं।
(१) जिनसिद्ध
(२) अजिनसिद्ध
(३) तीर्थसिद्ध
(४) अतीर्थसिद्ध
:
(८) स्त्रीलिंगसिद्ध :
: तीर्थकर पद प्राप्त कर मोक्ष जाने वाले जीव जिनसिद्ध कहलाते हैं ।
:
(७) स्वलिंगसिद्ध :
(६) पुरुषलिंगसिद्धः
२४ (क) उत्तराध्ययनसूत्र टीका पत्र ३३३८ ।
उत्तराध्ययनसूत्र टीका पत्र ३३४३ ।
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: तीर्थकर पद को प्राप्त किये बिना, सामान्य केवली होकर जो जीव मोक्ष को प्राप्त करते हैं वे अजिनसिद्ध हैं।
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(५) गृहस्थलिंगसिद्धः जो जीव गृहस्थ श्रावक के वेश से मोक्ष पद को प्राप्त करते हैं, वे गृहस्थलिंगसिद्ध कहे जाते हैं।
(६) अन्यलिंगसिद्ध
तीर्थ की स्थापना के बाद मोक्ष जाने वाले जीव तीर्थसिद्ध कहलाते हैं ।
तीर्थ स्थापना से पूर्व मोक्ष जाने वाले जीव अतीर्थसिद्ध कहे जाते हैं ।
: अन्य परम्पराओं के मुनि-वेश अर्थात् तापस, परिव्राजक आदि के वेश से मोक्ष जाने वाले जीव अन्यलिंगसिद्ध कहलाते हैं ।
जैनमुनि के स्वलिंगसिद्ध
वेश से मुक्ति पाने वाले जीव कहलाते हैं।
स्त्री शरीर से मोक्ष प्राप्त करने वाले जीव. स्त्रीलिंगसिद्ध माने जाते हैं।
(१०) नपुंसकलिंगसिद्धः जो नपुंसक शरीर से मोक्ष प्राप्त करते हैं वे जीव नपुंसकलिंगसिद्ध होते हैं।
पुरुष शरीर से मोक्ष प्राप्त करने वाले जीवं पुरुषलिंगसिद्ध हैं।
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भावविजयजी; नेमिचन्द्राचार्य ।
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