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जाती है। इस प्रकार चार्वाकदर्शन शरीर से पृथक् आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता है।
अनात्मवादी दर्शन के रूप में प्रसिद्ध बौद्धदर्शन भी चित्त-संतति के रूप में परिर्वतनशील/क्षणिक आत्मा को क्षणिक स्वीकार करता है। चार्वाक एवं बौद्धों के अतिरिक्त समस्त भारतीय दर्शन आत्मा की नित्य सत्ता में विश्वास रखते हैं। बौद्धदर्शन चाहे अनात्मवादी दर्शन कहलाता है, फिर भी उसकी चित्त-संतति या चेतनधारा की अविच्छिन्नता की अवधारणा परोक्षतः आत्मा की परिणामी सत्ता का ही समर्थन करती है।
आत्मा की शाश्वत सत्ता को सिद्ध करते हुए जैनागम आचारांगसूत्र में कहा गया है 'जस्स नत्थि पुरा पच्छा मज्झे तत्थ कओ सिआ' अर्थात् जिसका पूर्व एवं पश्चात् नहीं होता उसका मध्य कैसे सम्भव है। आत्मा की वर्तमान कालिक सत्ता को स्वीकार करने पर उसकी त्रैकालिक सत्ता स्वत: सिद्ध हो जाती है । वर्तमान आत्मा की सत्तापूर्व में भी थी और भविष्य में भी होगी। उत्तराध्ययनसूत्र में आत्मा को अमूर्त मानते हुए नित्य माना गया है। इस प्रकार इसमें आत्मा के त्रैकालिक अस्तित्व को स्वीकार किया गया है।
आत्मा के त्रैकालिक अस्तित्त्व को मानने वाली दार्शनिक धाराएं भी दो भागों में विभक्त हैं- एक ओर सांख्य एवं योग दर्शन है तो दूसरी ओर जैन, न्याय-वैशेषिक और मीमांसा दर्शन हैं। सांख्य एवं योग दर्शन आत्मा को कूटस्थ नित्य मानते हैं जबकि जैनदर्शन आत्मा की परिणामी नित्यता को स्वीकार करता है। तथापि उसके कार्यों अर्थात् लक्षणों के आधार पर उसका अस्तित्व सिद्ध होता है । आत्मा अमूर्त है अतः यह इन्द्रिय प्रत्यक्ष का विषय नहीं बन सकती, लेकिन घट-पट आदि मूर्त पदार्थों के समान उसका इन्द्रिय प्रत्यक्ष सम्भव नहीं है।
आधुनिक युग में वैज्ञानिक भी अनेक तत्त्वों का वास्तविक प्रत्यक्ष नहीं कर पाते हैं, किन्तु उनके कार्यों के आधार पर उनकी सत्ता को स्वीकार करते हैं,
२ 'सत्त्वाः' प्राणिनः ‘समुच्छति' त्ति संमूर्छन्ति पूर्वमसन्त एव शरीराकार रिणतभूतसमुदायत उपद्यन्ते, तथा चाहु 'पृथिव्यपस्तेजोवायुरिति तत्त्वानि, एतेभ्यश्चैतन्यं, मघांगेभ्यो मदशक्तिवत्', तथा 'नासई त्ति नश्यन्ति अभूपटलवतालय मुपयान्ति ‘णावचिठे' त्ति नपुनः अवतिष्ठन्ते -शरीरनाशे सति न क्षणमा यवस्थितिभाजो भवन्ति।
- उत्तराध्ययनसूत्र टीका पत्र ४०१ (शान्त्याचार्य)। ३ आचारांग १/४/४/४६
- (अंगसुत्ताणि, लाडनूं, खण्ड १, पृष्ठ ३७)। ४ 'नो इन्दियग्गेज्झा अमुत्तभावा, अमुत्तभावा वि य होइ निच्चो ।
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