________________
१७४
(३) अधोलोक – मध्यलोक के नीचे का भाग अधोलोक है। यह कुछ अधिक सातरज्जू प्रमाण है इसमें क्रमश: नीचे-नीचे निम्न सात पृथ्वियां हैं, जो क्रमशः सात नरकों के नाम से भी प्रसिद्ध हैं -
(१) रत्नप्रभा; (२) शर्कराप्रभा; (३) बालुकाप्रभा; (४) पंकप्रभा; (५) धूमप्रभा; (६) तमःप्रभा; तथा (७) महातमः प्रभा। इनमें मुख्यतः नरक के जीवों का निवास स्थान है।
संसारी जीव इन तीनों लोकों में परिभ्रमण करता है। उत्तराध्ययनसूत्र में नवतत्त्व की विवेचना के अन्तर्गत यह बतलाया गया है कि जीव किन कारणों से संसार में परिभ्रमण करता है तथा उनसे मुक्त कैसे होता है। इसे स्पष्ट करने हेतु आगे हम नवतत्त्वों की विवेचना प्रस्तुत कर रहे हैं -
4.9 नवतत्व की अवधारणा
उत्तराध्ययनसूत्र के अट्ठाईसवें अध्ययन में षद्रव्य के विवेचन के साथ नवतत्त्वों का भी उल्लेख किया गया है। किन्तु यहां विशेष रूप से ध्यान देने योग्य यह है कि इसमें षद्रव्य की विवेचना ज्ञान के अन्तर्गत की गई है तथा नवतत्त्व की व्याख्या दर्शन के अन्तर्गत की गई है अर्थात् इसमें षद्रव्य, गुण, पर्याय आदि को ज्ञान का विषय तथा नवतत्त्व को श्रद्धा/दर्शन का विषय माना है। इससे एक बात यह स्पष्ट होती है कि नवतत्त्व की व्यवस्था अध्यात्मपरक/आस्थापरक है। . उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार तत्त्वों की संख्या नौ है जबकि तत्त्वार्थसूत्र में सात तत्त्व माने गये हैं। सात एवं नौ का यह अन्तर विवक्षाभेद से है। पुण्य एवं पाप को आश्रवतत्त्व में समाहित कर लेने पर तत्त्व सात माने जाते हैं। वस्तुतः नवतत्त्व में मूलतत्त्व जीव एवं अजीव हैं। जीव की मुक्ति में बाधक या साधक होने वाली अवस्थाओं का विस्तार नवतत्त्वों के रूप में उपलब्ध होता है। उत्तराध्ययनसूत्र
६३ उत्तराध्ययनसूत्र ३६/१५६ एवं १५७ । ६४ उत्तराध्ययनसूत्र २८/७ एवं १४ । ६५ (क) उत्तराध्ययनसूत्र २८/१४ ; (ख) तत्त्वार्थसूत्र १/४ ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org