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________________ १७२ छोड़कर लोक के आकार, प्रकार तथा परिमाण सम्बन्धी कोई चर्चा उपलब्ध नहीं होती। इसमें मात्र सिद्धशिला के आकार, प्रकार और संस्थान की चर्चा है। परम्परा के अनुसार नरक के भूमितल से लेकर सिद्धशिला के उपरितल तक लोक १४ रज्जू परिमाण लम्बा बतलाया गया है। रज्जू जैनदर्शन का पारिभाषिक शब्द है। एक रज्जू में असंख्यात योजन होते हैं। सम्पूर्ण द्वीप एवं समुद्र के अन्त में स्थित स्वयंभूरमणसमुद्र के एक तट से दूसरे तट की दूरी का जो परिमाण है, वह रज्जू है। लोक के आकार के सम्बन्ध में भगवतीसूत्र में कहा गया है कि यह लोक सुप्रतिष्ठित आकार वाला है अर्थात् नीचे विस्तृत, मध्य में वरवज्र के आकार का और ऊपर में ऊर्ध्वमृदंग. के आकार में संस्थित है। सुप्रतिष्ठित आकार का अर्थ त्रिशरावसम्पुटाकार है। एक शिकोरा (शराव) उल्टा, उस पर एक सीधा, फिर उस पर एक उल्टा रखने से जो आकार बनता है; उसे त्रिशरावसम्पुटाकार कहते हैं। इस प्रकार से बने आकार में नीचे चौड़ाई अधिक, मध्य में कम तथा पुनः ऊपर चौड़ाई अधिक होती है। ___सामान्यजन को लोक का आकार समझाने के लिए इसे अनेक पदार्थों से उपमित किया गया है। जैसे अधोलोक को पर्यक, तथा वेत्रासन के सदृश आकार वाला कहा गया है। पर्यक, तत्र एवं वेत्रासन का विस्तार नीचे अधिक एवं ऊपर कम होता है, अतः अधोलोक का आकार इनके समान बतलाया गया है। इसी प्रकार मध्यलोक का आकार वरवज्र एवं झल्लरी के समान है क्योंकि मध्यलोक का विस्तार अधिक एवं ऊंचाई कम है तथा ऊर्ध्वलोक को ऊर्ध्वमृदंग के आकार का बतलाया गया है। यह मृदंग के समान बीच में अधिक चौड़ा तथा ऊपर-नीचे कम चौड़ा है। प्रशमरति तथा लोक को पुरूषाकार कहा गया है जैसे किसी पुरूष का पांव करके दोनों हाथ कटि पर रखकर खड़े होने पर जो आकार बनता है; वही आकार लोक का भी कहा गया है। वर्तमान में जैन प्रतीक लोक के आकार का माना जाता है। ५८ प्रवचनसारोद्धार ४११ । ५६ (क) भगवती ७/१/३। (ख) वही ११/१०/६५, ६६ एवं ६७ । - साध्वी हेमप्रभा श्री। - (अंगसुत्ताणि, लाडनूं, खण्ड २, पृष्ठ २७२) । - (अंगसुत्ताणि, लाडनूं, खण्ड २, पृष्ठ ५०५) । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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