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________________ १७१ लोक को ‘पंचास्तिकायमय' बताया गया है। षद्रव्य के अन्तर्गत पंचास्तिकाय भी सन्निहित है। अतः हमारी मान्यता में यह कहना अनुचित नहीं होगा कि उत्तराध्ययनसूत्र में लोक को जीव-अजीव रूप, पंचास्तिकायमय तथा षद्रव्यात्मक कहा गया है। जैनदर्शन के अनुसार लोक शाश्वत है। यह अनादि अनन्त है। जैनागमों में लोक को शाश्वत कहने का यह अर्थ नहीं है कि इसमें कोई परिवर्तन नहीं होता है। यही कारण है कि जैनदर्शन में लोक को परिणामीनित्य माना गया है। यह कूटस्थ नित्य नहीं है। उत्तराध्ययनसूत्र में लोक की शाश्वतता एवं अशाश्वतता की चर्चा निम्न रूप से मिलती है : उत्तराध्ययनसूत्र के छत्तीसवें अध्ययन में लोक को जीव एवं अजीवमय माना है। इससे लोक की शाश्वतता प्रकट होती है क्योंकि इसमें जीव एवं अजीव का अस्तित्व सदा से है। अतः लोक भी शाश्वत हुआ। दूसरी और उत्तराध्ययनसूत्र में कहा है 'अधुवे असासयंमि' अर्थात् लोक अनित्य है, अशाश्वत है प्रवाह की अपेक्षा से/व्यक्ति विशेष की अपेक्षा से लोक अशाश्वत है।" यह सत्य है कि जगत में प्रतिक्षण परिवर्तन हो रहा है। परिवर्तन के होते रहने पर भी उसका सर्वथा विनाश नहीं होता है, क्योंकि वह सत् है। सत् का आत्यन्तिक नाश कभी नहीं होता और अभाव से किसी का अविर्भाव/उत्पाद नहीं होता (Nothing can never become something: something can never become nothing.)। निष्कर्षतः शून्यवादी बौद्धों की तरह विश्व न तो अभावरूप (शून्यरूप) है और न अद्वैतवेदान्तियों की तरह कल्पनाप्रसूत (मायारूप) है अपितु यह यथार्थ है, सत है, अनादिकाल से है और अनन्त काल तक रहेगा। लोक का आकार एवं परिमाण उत्तराध्ययनसूत्र एवं उसकी टीकाओं में ऊर्ध्वलोक, मध्यलोक और अधोलोक में स्थित विभिन्न जाति के देव, मनुष्य, तिर्यंच एवं नारक जीवों भेद-प्रभेद और उनकी आयुमर्यादा के उल्लेख तो उपलब्ध होते हैं, किन्तु केवल सिद्धशिला को ५६ (क) ऋषिभाषित ; (ख) भगवती - १३/४/१५ ५७ उत्तराध्ययनसूत्र - ८/१1 - (अंगसुत्ताणि, लाडनूं, खण्ड २, पृष्ठ ६०१) । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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