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से विस्तरित या स्कन्धरूप द्रव्य अंशों में विभाजित किया जा सके, वह 'प्रदेशत्व' गुण है। जिस गुण के कारण द्रव्य में हलकेपन या भारीपन का अभाव होता है, वह 'अगुरूलघुत्व है। अगुरूलघुत्व गुण पुद्गलास्तिकाय के सन्दर्भ में केवल परमाणु में घटित होता है स्कन्ध में नहीं।
इस प्रकार ये छ: सामान्य गुण प्रत्येक द्रव्य में अन्तर्निहित होते हैं। (2) विशेष गुण
द्रव्य के वे गुण जो सब द्रव्यों में समान रूप से प्राप्त नहीं होते हैं विशेष गुण कहलाते हैं। दूसरे शब्दों में वे विशेषतायें या लक्षण जिनके आधार पर एक द्रव्य को दूसरे द्रव्य से पृथक किया या समझा जा सकता है तथा दार्शनिक भाषा में द्रव्य में रहने वाला व्यावर्तकधर्म विशेष गुण कहलाते हैं - विशेष गुण प्रत्येक द्रव्य के अपने भिन्न-भिन्न हैं जिनकी विस्तृत चर्चा यहां स्वतन्त्र रूप से न करते हुए षड्द्रव्यों के विवेचनान्तर्गत करेंगे। यहां संक्षेप में उनके नाम प्रस्तुत किये जा रहे हैं। द्रव्य
विशेष गुण जीव
उपयोग (ज्ञान-दर्शन) पुद्गल
स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण और शब्द
गतिहेतुत्व अधर्म
स्थितिहेतुत्व आकाश,
अवगाहनहेतुत्व
वर्तनाहेतुत्व इनके अतिरिक्त मूर्तत्व, अमूर्तत्व, चेतनत्व एवं अचेतनत्व आदि गुणों को सामान्य-विशेषात्मक माना गया है। वस्तुतः अपेक्षा भेद से ही इन्हें सामान्य एवं विशेषात्मक माना जा सकता है। जैसे चेतना को जीवों का सामान्य गुण माना जा सकता है क्योंकि वह व्यावर्तकधर्म से रहित है। इसे विशेष गुण भी कहा जा सकता है, क्योंकि यह सब द्रव्यों में समान रूप से नहीं पाया जाता है। मूर्तत्व एवं अमूर्तत्व तथा चेतनत्व एवं अचेतनत्व ये परस्पर विरोधी धर्म हैं। इन दोनों युग्मों में से एक-एक धर्म ही मिलेगा। अतः प्रत्येक द्रव्य में आठ ही सामान्य गुण पाये जा सकते हैं। दस नहीं।
अब हम अग्रिम-क्रम में द्रव्य के एक अन्य पहलू पर्याय का विवेचन करेंगे।
धर्म
काल
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