________________
१४७
देकार्त देकार्त द्वैतवादी दार्शनिक हैं। इनके अनुसार द्रव्य वह है, जिसकी स्वतन्त्र सत्ता है। देकार्त सापेक्ष एवं निरपेक्ष ऐसे दो द्रव्यों को स्वीकार करते हैं। ईश्वर निरपेक्ष द्रव्य है तथा चित्त और अचित्त सापेक्षद्रव्य हैं । चित्त एवं अचित्त द्रव्य परस्पर निरपेक्ष हैं पर ये दोनों ईश्वर पर आश्रित होने से सापेक्ष हैं।
स्पिनोजा
स्पिनोजा ईश्वर को एकमात्र परमद्रव्य मानते हैं । ये अद्वैतवादी दार्शनिक कहलाते हैं। इनके अनुसार द्रव्य स्वतन्त्र, निरपेक्ष, अद्वितीय, अपरिच्छिन्न तथा अपरिमित है। इसी प्रकार द्रव्य स्वतः सिद्ध है अर्थात् द्रव्य स्वयं अपना प्रमाण है, स्वसंवेद्य है। द्रव्य का यह स्वरूप स्पिनोजा के परमद्रव्य ईश्वर पर घटित होता है।
लाइबनित्स - लाइबनित्स के शब्दों में द्रव्य वह है जो स्वतन्त्र क्रियाशक्ति से सम्पन्न हो। वे द्रव्य की स्वतन्त्र सत्ता की अपेक्षा उसकी स्वतन्त्र क्रियाशक्ति पर विश्वास करते हैं। इस प्रकार लाइबनित्स का द्रव्य शक्ति सम्पन्न सक्रिय एवं परिणामी है। इनके अनुसार चिदणु विश्व की अन्तिम अविभाज्य इकाई है।
लॉक
लॉक के अनुसार गुणों का आश्रय या आधार 'द्रव्य' कहलाता है। लॉक की यह परिभाषा उत्तराध्ययनसूत्र की द्रव्य की परिभाषा से समानता रखती है। द्रव्य के विषय में दार्शनिक लॉक की मान्यता है कि द्रव्य अज्ञेय है। वह गुणों के समान इन्द्रियानुभूति या प्रत्यक्ष का विषय नहीं है। अतः उसकी सत्ता अज्ञेय है।
द्रव्य सम्बन्धी इन विभिन्न दार्शनिक अवधारणाओं में जो अवधारणा जैनदर्शन के अधिक निकट है, वह न्यायवैशेषिकदर्शन की द्रव्य सम्बन्धी अवधारणा
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org