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उत्तराध्ययनसूत्र की यह टीका सर्वाधिक प्रचलित और महत्त्वपूर्ण है। . यह टीका १६००० गाथा परिमाण है।
नेमिचंद्राचार्य कृत टीका बृहद्गच्छीय नेमिचंद्रसूरि का दूसरा नाम ‘देवेन्द्रगणि' भी मिलता है। लेकिन इनका प्रचलित नाम नेमिचंद्रसूरि है। इन्होंने वि. सं. ११२६ में उत्तराध्ययनसूत्र पर टीका लिखी, जिसका नाम सुखबोधा टीका है। यह टीका. शान्त्याचार्य की शिष्यहिता टीका के आधार पर लिखी गई है। इस बात को स्वयं वृत्तिकार ने स्वीकार किया है। सरल एवं सुबोध होने से इसका नाम 'सुखबोधा' रखा गया है। यह १२००० गाथा परिमाण है।
इसमें प्रारम्भ में वृत्तिकार ने तीर्थकर, सिद्ध, सर्वसाधु एवं श्रुतदेवता का नमस्कार रूप मंगलाचरण किया है। इसकी प्रशस्ति में वृत्तिकार ने स्वयं के नाम के साथ गच्छ, गुरू एवं गुरूभ्राता का परिचय भी दिया है तथा टीका के रचना काल एवं स्थान का भी उल्लेख किया है।
लक्ष्मीवल्लभगणिविहित टीका लक्ष्मीवल्लभगणि ने उत्तराध्ययनसूत्र पर दीपिका' टीका लिखी है । इसकी भाषा सरल एवं बोधगम्य है। इसका रचनाकाल वि. सं. १५५२ है। इसमें टीकाकार ने पूर्वाचार्यों के मतों को उद्धृत करते हुए कहीं-कहीं उनसे अपने मत-भेद वैभिन्य का भी प्रतिपादन किया है। इसका ग्रन्थाग्र १६२५५ गाथा परिमाण है।
कमलसंयमोपाध्याय कृत टीका
कमलसंयम उपाध्याय ने उत्तराध्ययनसूत्र पर 'सवार्थसिद्धि' नामक टीका की रचना की। इसका समय वि. सं. १५४४ है। इस टीका का आधार शिष्यहिता एवं सुखबोधा टीका ही है। इसका ग्रन्थाग्र १३५१७ गाथा परिमाण है।
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