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भावविजयगणिकृत टीका
भावविजयगणि आचार्य विमलसूरि के शिष्य थे। इन्होंने वि. सं. १६८६ में उत्तराध्ययनसूत्र पर टीका लिखी है। इसका ग्रन्थमान १६२५५ गाथा परिमाण है । यह मुख्यतः शांत्याचार्य की टीका पर आधारित है। यह पद्यात्मक है तथा इसकी भाषा सरल एवं सुबोध है। मूल गाथाओं की संक्षिप्त व्याख्या देखने के लिए यह अत्यन्त उपयोगी टीका है।
उल्लेखित व्याख्या ग्रन्थों के अतिरिक्त उत्तराध्ययनसूत्र की और भी अनेक टीकायें हैं जो वर्तमान में प्रायः अप्रकाशित हैं। हम उनकी संक्षिप्त सूची, नाम, कर्त्ता तथा रचनाकाल के विवरण सहित नीचे प्रस्तुत कर रहे हैं
-
1.
२.
३. ४.
टीका के नाम अवचूरि दीपिका लघुवृत्ति वृत्ति वृत्ति ६. बालवबोध,
टीका के कर्त्ता ज्ञानसागरसूर उदयसागरसू खरतरतपोरत्नवाचक कीर्तिवल्लभ
TE
५.
विनयहंस कमललाभ
७.
दीपिका
टीका
वृत्तिटीका
हर्षकुल अजितदेवसूरि हर्षनंदनगणि मानविजय धर्ममंदिर उपाध्याय
बालावबोध - मकरंदटीका
८
E.
१०.
99.
टीका का नाम
अवचूरि
टीका-दीपिका
·9.
२.
३.
४.
५.
६.
११६
इनके अतिरिक्त भी कुछ वृत्तियां, टीकायें, दीपिकायें तथा अवचूरियां भी उपलब्ध होती हैं। जिनमें से कुछेक कर्त्ताओं के नाम नहीं हैं तो कुछेक के रचनाकाल
का उल्लेख नहीं है। उनका विवरण नीचे दिया जा रहा है।
वृत्ति
टीका
६.
६.
अवचूरि
बालावबोध
७. अवचूरि
चूर्णि
टीका
१०.
दीपिका
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टीका के कर्ता
अजितदेवसूर माणिक्यशेखरसूरि
शान्तिभद्राचार्य
मुनिचन्द्रसूरि
ज्ञानशीलगणि
समरचन्द्रसूर
गुणशेखरसूरि अमरदेवसूरि
रचनाकाल
१५४१ वि.सं.
१५४६. वि.सं.
१५५० वि.सं.
१५५२ वि.सं.
१५६७-८१ वि.सं. १६ वीं शताब्दी
१६ वीं शताब्दी
१६२८ वि.सं.
१७११ वि.सं.
१७४१ वि.सं.
१७५० वि.सं.
रचनाकाल
अनुपलब्ध
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वि.स. १४६१
अनुपलब्ध
अनुपलब्ध
वि.स. १६३७
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