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अन्तर की उर्मियां ।
परमात्मा महावीर की अन्तिम देशना को परमोपकारी गणधर भगवंतों ने जनकल्याणार्थ उत्तराध्ययनसूत्र के रूप में गुंफित किया । उत्तराध्ययनसूत्र जैन आगम साहित्य के मूर्धन्य ग्रंथों में एक है क्योंकि अन्य आगम ग्रंथ मुख्यतः एक ही विषय को प्रतिपादित करते है, वहां उत्तराध्ययन सूत्र में अनेक विषयों का समावेश होता है । जैन धर्म की दार्शनिक एवं आचार संबंधी मान्यताओं को समझने के लिये यह अतीव उपयोगी है । भगवान महावीर के समय में इसकी जितनी उपयोगिता थी, वर्तमान में इसकी उपयोगिता और अधिक है ।
इस बात को लक्ष्य में रखते हुये हमारे जीवन को नया आयाम देने वाली प.पू. गुरुवर्या श्री ने हमारी प्रज्ञासंपन्ना, आत्मप्रिया भगिनी विनीतप्रज्ञा श्री जी को प्रेरणा एवं निर्देश दिया कि वे उत्तराध्ययन पर कुछ काम करें । पू. गुरूवर्या श्री के निर्देशानुसार उत्तराध्ययन से संबंधित विषय का चयनकर हमारी बहिना ने अपना शोधकार्य प्रारंभ किया । परमात्मा की अंतिमवाणी को जनोपयोगी बनाने का भरसक प्रयास उन्होंने इस ग्रन्थ में किया है । जैन दर्शन के सिद्धान्तों का तुलनात्मक चिंतन करते हुए इस शोध प्रबंध में कई विषयों का वैज्ञानिक विश्लेषण भी किया है । उनका यह प्रयास स्तुत्य एवं अनुमोदनीय है ।
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