________________
परमात्मा का यह जीवनदर्शन संपूर्ण रूपेण उसका स्वयं का जीवनदर्शन बने। उसका सृजनात्मक व्यक्तित्त्व उसके साधनात्मक जीवन का संगीत बन जाय । उसके जीवन सें अहं और मम शब्द सदा सदा के. लिये लुप्त हो जाय । साधना ही उसका विश्राम बने । वह संयम यात्रा के पड़ावों को सानन्द पार करती हुई सतत गतिशील रहे । रत्नत्रय की साधना द्वारा स्वयं को निखारते हुए जिनशासन की गरिमा में अभिव द्धि करे यही शुभाशीष है । ___यह शोधप्रबंध अध्येताओं को उत्तराध्ययनसूत्र के जीवन दर्शन के अनुरूप जीवन जीने की सतत प्रेरणा देता रहे, यही इसकी सच्ची उपयोगिता होगी।
'श्री चन्द्रप्रभु जैन जूना मंदिर ट्रस्ट' ने इस शोधप्रबंध का प्रकाशन करवाकर जिनवाणी के प्रति अपनी सच्ची श्रद्धा-आस्था का जो परिचय दिया, वह अनुमोदनीय है ।
मंगलाकांक्षिणी
साधारण भवन कार्तिक पूर्णिमा 30-11-2001
(साध्वी हेमप्रभा)
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org